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बोलो मेरे शब्दों में

bolo mere shabdon mein

सत्येंद्र कुमार

सत्येंद्र कुमार

बोलो मेरे शब्दों में

सत्येंद्र कुमार

और अधिकसत्येंद्र कुमार

     

    पाब्लो नेरूदा की स्मृति में

    जब मैं मर रहा था
    तब भी मेरे पास जीने के न जाने कितने कारण थे
    बच्चों की पतंग उड़ सके पूरी उमंग के साथ
    इसके लिए धागे को मज़बूत बनाना था
    खेतों को कह आया था
    अभी लौटता हूँ पानी और बीज और हल के साथ
    भट्टियों में तपा तेज़ करने थे औज़ार
    चुंबन जड़ना था रोती हुई छोटी बच्ची के गालों पर
    कुछ गीत और लड़ने के सामान
    पहुँचाने थे किसानों-मज़दूरों के पास
    घरों में मुस्कुराहट पहुँचानी थी
    युद्ध पिपासु भेड़ियों को दूर खदेड़ना था
    पूँजी के दलालों को दफ़नाने के लिए क़ब्रें खोदनी थीं
    अजन्मे गीतों को शब्द देने थे 
    सभ्यताओं के खँडहरों से चुनकर लाना था वह सब कुछ
    जो भविष्य को समर्पित थे 
    बग़ीचे में फले संतरे बच्चों के बीच बाँटने थे
    जनता की जीती हुई लड़ाई को
    फिर से फ़ासिस्ट के हाथों से छीनना था
    अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित
    वे डरे हुए लोग थे 
    जिन्होंने मुझ मरते हुए को घेर रखा था
    वे गायकों से डरते थे
    मज़दूरों से डरते थे
    कम्युनिस्ट से डरते थे
    वे जनता के लेखकों से डरते थे
    वे डरते थे 
    और योद्धा होने का स्वाँग रचते थे।
    उन्होंने पुस्तकालय जलाए
    किताबें जलाईं
    यह सब उन्होंने तब किया
    जब मैं मर रहा था
    लेकिन उस समय भी मेरे पास
    जीने के कई कारण थे
    वे जल्द से जल्द
    मुझे मरता देखना चाह रहे थे 
    या मार देना चाह रहे थे
    क्योंकि उन्हें मेरे जीने के कारणों से डर था।
    वे डरे हुए थे
    ऐसे ही डरे हुए लोग
    योद्धा होने का भ्रम पाले
    इतिहास के काले पन्नों में मुँह घुसेड़े होते हैं
    ऐसे में जब मैं मर रहा था
    तब भी मैं चाहता रहा
    यहाँ से उर्दू और मरते हुए लोगों के कानों में
    फिर से जीतने का गीत गुनगुना आऊँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हे गार्गी (पृष्ठ 109)
    • रचनाकार : सत्येंद्र कुमार
    • प्रकाशन : रश्मि प्रकाशन
    • संस्करण : 2018

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