ब्ल्डप्रेशर
blDapreshar
इस बीमारी का कोई इलाज नहीं, असाध्य सत्ता की व्याधि में
दवा-दारू बेकार है, सही-सही पथ्य या व्यायाम—किसी से भी
क्या कुछ भी होता है! अनिद्रा के फंदे में रात कटती है,
रक्त्त मचल-मचल उठता है, बेदम होकर नाड़ी छूटने लगती है।
लाल आँखें नीले आकाश पर उदार प्रांत पर टिका दो
ऑफ़िस की गोपनीय फ़ाइलों में आँखों का इलाज नहीं है।
अगर खुले मैदान में पेशियों की ज़ंजीर खोल दोगे,
अगर स्नायु नित्य नि:स्वार्थ विराट् में मुक्तिस्नान करेंगे,
अगर दिगन्त तक फैली निर्मल हवा मे अपने निश्वास छोड़ोगे,
तभी शरीर सुधरेगा, उच्च ताप घटेगा; इसकी दवाई
वैद्यों के हाथ में नहीं है। इस रोग का नुस्ख़ा है आकाश में,
धरती में, वनस्पति ओषधि में, खेत-मैदान-घास में,
पहाड़ में, नदी में, बाँध में, दृश्य जगत् के अनंत प्रांतर में,
प्रकृति में ह्दय के सहज स्वप्न में रूपांतर में;
इसकी चिकित्सा है लोगों की भीड़ में, गंदी बस्ती की झोपड़ियों की
जनता में—
जनता में या धरती में, एक ही बात है, अन्योन्य सत्ता में।
- पुस्तक : स्मृति सत्ता भविष्यत् तथा अन्य श्रेष्ठ कविताँए (पृष्ठ 69)
- रचनाकार : विष्णु दे
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
- संस्करण : 1673
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