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छोटा पक्षी : बड़े पक्षी के प्रति

chhota pakshi ha baDe pakshi ke prati

अनुवाद : रत्नमयी देवी दीक्षित

का. मा. पणिक्कर

का. मा. पणिक्कर

छोटा पक्षी : बड़े पक्षी के प्रति

का. मा. पणिक्कर

और अधिकका. मा. पणिक्कर

    हे विहंगमश्रेष्ठ! तुम व्योम-मार्ग में उड़ो, इस तरु शाखा में

    बैठना तुम्हारे लिए उचित नहीं है।

    अग्नि-गोलों के जैसे तुम्हारे ये नेत्र, जो हमारे-जैसों के लिए

    भयावने हैं, सूर्य की सुंदरता निरखने योग्य हैं। उनसे तुम नीचे की

    ओर क्यों निहारते हो?

    प्रौढ़-गंभीर भाव से जब तुम चारों ओर देखते हो तब मैं भय से

    सिमटकर अपने-आपको तुच्छ तृणों के बीच छिपा लेता हूँ।

    हे महानुभाव, हवा में पाल फैलाए जाने वाले पोत के समान

    तुम उड़कर मेघ-मंडल को अलंकृत करो।

    तब तुम्हारे प्रभाव और वैभव के स्तुति गीत गा-गाकर तुम्हारी

    उन्नति से मैं भी अभिमान-पुलकित होऊँगा।

    अपनी कायरता को मैं भी भूल जाऊँ, अपने अशक्त अधीर

    नयनों में भी उल्लास की चन्द्रिका छिटका लूँ!

    दुबककर, छिपकर जिस कोने में अब तक बैटा हूँ, उससे मैं भी

    बाहर निकल पाऊँ! मैं भी इस हलकी धूप का सुख अनुभव कर सकूँ!

    तुम आकाश के उच्चतम स्थान का संधान करके वहाँ पहुँच जाओ।

    हम दीन-हीनों को भुला दो; तब हे गृध्रश्रेष्ठ, हम भी तुम्हारी

    प्रशस्ति गाएँगे कि पक्षिवर्ग में सर्वोत्तम तुम हो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1953 (पृष्ठ 485)
    • रचनाकार : का. मा. पणिक्कर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1956

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