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बिना टिकट यात्रा करती लड़की

bina ticket yatra karti laDki

नीलेश रघुवंशी

नीलेश रघुवंशी

बिना टिकट यात्रा करती लड़की

नीलेश रघुवंशी

और अधिकनीलेश रघुवंशी

    बिना टिकट यात्रा करती लड़की

    होते हुए सबके साथ भी

    सबसे बचाती है अपने को

    किसी से भी आँखें नहीं मिलाती

    बिना टिकट यात्रा करती लड़की।

    छिपाती है अपनी घबराहट

    जेब में हाथ डाल चुपचाप टटोलती है रुपए

    टिकट चेकर को देख मुस्कुराती है

    पास आता है टिकट चेकर

    तो खिड़की से बाहर झाँकने लगती है

    बिना टिकट यात्रा करती लड़की।

    राहत की साँस लेती है

    बिना टिकट यात्रा करती लड़की

    पेड़, पहाड़ और आसमान भी तो

    हैं उसी की तरह बिना टिकट

    बिना टिकट ही यात्रा करती हैं चिड़ियाँ सारे आसमान में।

    पच्चीस रुपए का टिकट लो

    इस महँगाई और बेरोज़गारी के दिनों में

    अखरता है कितना

    इन पच्चीस रुपयों में ले जा सकती है फल पिता के लिए।

    ख़रीद सकती है

    एक ज़रूरी किताब

    अपनी छोटी बहन के लिए।

    बोगी में बैठे लोग बतियाते हैं—

    ''चेहरा बता देता है साब

    कौन चल रहा है बिना टिकट''

    मन ही मन हँसती है

    और हँसी को छिपाती है

    बिना टिकट यात्रा करती लड़की

    पकड़े जाने की आशंका से

    अंदर ही अंदर सिहर जाती है

    बिना टिकट यात्रा करती लड़की।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नीलेश रघुवंशी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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