भूल समय के ठीक चरित्र के लिए
bhool samay ke theek charitr ke liye
आँखों के सामने विपुल सृष्टि का सामर्थ्य
जीवित रहने-सा इतिहास और
मृत व्यक्तित्वों की ग़ैर-ज़रूरी किम्वदंती।
किस पर विश्वास करते हो पतालक चरित्र
सामने इतिहास की पोशाक ख़ून से सनी,
भयंकर समय की बघनखी हिंस्रता।
नंगी पाशविकता के पास और पास चढ़ आती
और तुम्हारे पीछे अपने अहंकार की बाड़ खड़ी
खड़ी है और तुम्हारे सामने भी।
तुम्हारे पेट में अचानक भय का हथौड़ा
पीट रहा। तुम्हारे पिंजरे में भयानक रात की
करवट बदलने की निशब्द चंचलता और
तुम्हारे दिमाग़ में निर्दिष्ट विस्फोट का जन्मदिन
इसी घड़ी एक क्रोधी क्रम विस्तार
इस नक्षत्रीय बेला में।
तुम चुपचाप पड़े रहो वर्षों की धूप-वर्षा-हवा-ओस
खाकर लाचार दुर्बलता के ज़ोरदार फ़ासिल के ढेर
होने तक, फिर अँकुराते पौधे को
डराते रहो और तुम्हें भी डरा, फेंक उड़ा
देने की धमकी।
कैसी हालत, भय की रात में अहंकार का समूचा आकाश
नहीं होता कहीं आशा का चाँद-तारा
केवल मीलों-मील निरुद्दिष्ट चेतना का
निर्यातित परगना,
एक समयातीत अपमृत्यु का परिचित आँगन।
वाह, ऐसे नियमित खेल को तुम अस्वीकार करते
पलातक चरित्र, पर तुम स्वयं स्वीकृत
घटनाओं के रचयिता
इस समय स्थायी कंकाल के
स्थिर निर्वासित राजपुरुष।
तुम्हीं बोलो, जब आलोकित दिनों में
निरंतर साँसों का भरोसा था
हवा में व्याकुल
सभ्यता का परिचित आलोड़न था
और इतिहास के परिचित पन्नों
पर तुम्हारे अक्षर थे।
अपने लिए तुमने
क्यों नहीं किया कुछ भी?
- पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 287)
- संपादक : शंकरलाल पुरोहित
- रचनाकार : अमरेन्द्र खटुआ
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 2009
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