भिखारी
bhikhari
कोई लड़का
कोई बूढ़ा
कोई औरत
फटे पुराने कपड़ों में
अपनी औक़ात को लपेटे
दर-ब-दर
फैलाते हैं अपना दामन
माँगते हैं कुछ पैसे
दो वक़्त की रोटी के लिए।
लोग समझते हैं
कि वो माँगते है
कुछ पैसे, रोटी का टुकड़ा
सिर्फ़, अपना पेट भरने के लिए।
बिल्कुल ये सच ही है
मगर
हक़ीक़त तो ये है
के वो दामन फैलाकर
दिलाते हैं
अपनी मजबूरी
और ग़रीबी का एहसास
और पेश करते हैं
भूख और लाचारी की
एक ऐसी तस्वीर
जिसे देखकर
अपने देश के
कृषिप्रधान देश होने पर
शर्म आती है।
- रचनाकार : वसीम अकरम
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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