भारतीय पंचांग के भरोसे कुछ प्रेम कविताएँ
bharatiy panchang ke bharose kuch prem kawitayen
चैत्र
राग-बिराग से इतर
बदलते मौसम में
मैं भटकता हूँ
एक जंगली फूल की तरह
तुम्हारी ख़ुशबू की तलाश
मुझे ले जाती है
अज्ञात नगरों तक
ईश्वर भी जानता है यह बात
तुम्हें देखे बिना
नहीं करूँगा मैं घोषणा नूतन वर्ष की।
वैशाख
जैसे शाख से लचक कर
टूट जाता है कोई पत्ता
जैसे धरती सिल लेती है
अपनी छोटी मगर गहरी चोट
वैसे ही मिलूँगा मैं तुमसे
इस बार
अवांछित से अप्रत्याशित होकर
ज्येष्ठ
सुख मेरा बड़ा भाई है
और दुःख छोटा
बड़े और छोटे के मध्य
मैं हूँ नितांत अकेला
मेरे पास प्रेम की अनेक कहानियाँ हैं
इसलिए दोनों मुझसे करते रहते हैं
बारी-बारी बात
मैं भूल गया हूँ
दिन, महीने और साल
सुख-दुःख की माया से बचाना
तुम्हारी ज़िम्मेदारी है अब।
आषाढ़
वो एक बादल था
जो लौटकर जाता था उस तक
हर बार
वो एक धरती थी
जो बदल लेती थी अपना अक्षांश
अकाल और बारिश
दोनों के मध्य फँसकर हो जाते थे भ्रमित
और धरती पर हमेशा
रहस्यमय लगता था प्राकृतिक न्याय।
श्रावण
बूँदें समझाने आती थी
एक बात
तुम यहीं कहीं हो मेरे आस-पास
हवा देती अर्घ्य
बादल पढ़ते थे मंत्र
मैं समिधा-सा जल उठता था
अपने बिस्तर पर
और
तुम्हें लगता था
बिजली चमकी है कहीं पर।
भाद्रपद
ताप से लड़ता था तन
मगर ये संक्रमण मन का था
जिसके लिए
नहीं बनी थी कोई दवाई
मैं मन ही बड़बड़ाता था तुम्हारा
दिल को देता था झूठी तसल्ली
दवा और डॉक्टर को भले ही मिला हो श्रेय
मगर सच यह है कि
तुम्हें याद करते-करते
ठीक हुआ हूँ मैं।
आश्विन
दुनिया बड़ी सात्विक लगती थी तब
लगता था येन-केन प्रकारेण
पहुँच ही जाऊँगा तुम तक
ये अलग बात है
शास्त्रों में कहा गया जिसे योग
वह वियोग था दरअस्ल
जिसे नहीं बदल पाया
कोई दैवी उपवास।
कार्तिक
तुम्हारे बिना
मैं शरद का कैसे करता अभिनंदन
इसलिए मैंने चुना मौन
इस बात का बदला रात के तीसरे पहर में
मुझसे लिया रोज़।
मार्गशीर्ष
न कोई मार्ग था
न मैं कहीं शीर्ष पर था
ऐसे में तुम्हें कैसे नज़र आता भला?
तुमने जिस दिन याद किया मुझे
वो बात मुझे पता चली
अज्ञातवास में भी
इसलिए मैं जानता हूँ
तुमसे मिलने का वो मार्ग
जो शीर्ष होने की अपेक्षा से मुक्त है।
पौष
संबंधों में यदि शीत पसर जाए
उसे देखना चाहिए हस्तक्षेप रहित होकर
इस तरह देखना आपको कर सकता है मुक्त
पारस्परिक दोषारोपण से
इस तरह से देखना
शीत को नहीं आता है पसंद
वो पिघलने लगता है
ख़ुद-ब-ख़ुद।
माघ
कई कहावतें सुनीं
कई आशंकाएँ जन्मीं
मगर प्रेम का फलादेश
बाँचने से बच गया मैं
इसलिए बच गई
हमेशा संभावनाएँ
इसी कारण
ऋतु दोष का
निर्धारण करने के लिए
ख़ुद अधिकृत किया मुझे ईश्वर ने।
फाल्गुन
जीवन में वसंत
और वसंत में जीवन
महसूस करने के लिए
तुम एक माध्यम रही
प्रेम ने मुझे भावुक नहीं
कृतज्ञ होना सिखाया।
- रचनाकार : डॉ. अजित
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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