(1)
भैंस के आगे बीन बजाई भैंस खड़ी पगुराती है।
कुछ-कुछ पूँछ उठाती है और कुछ-कुछ कान हिलाती है।
हुई मग्न आनंद कुंड में बँधा स्वर्ग का ध्यान।
दीख पड़ा मन की आँखों से एक दिव्य अस्थान॥
(2)
कोसों तक का जंगल है और हरी घास लहराती है।
हरयाली ही दीख पड़ै है दृष्टि जहाँ तक जाती है।
कहीं लगी है झड़बेरी और कहीं उगी है ग्वार।
कहीं खड़ा है मोठ बाजरा कहीं घनीसी ज्वार॥
(3)
कहीं पे सरसों की क्यारी है कहिं कपास के खेत घने।
जिसमें निकले मनो बिनौले अथवा घड़ियों खली बने।
मूँग मोठ की पड़ी पतीरन और चने का खार।
कहीं पड़े चौले के डंठल कहीं उड़द का न्यार॥
(4)
कहीं सैकड़ों मन भूसा है कहीं पे रक्खी सानी है।
कच्चे तालाबों में आधा कीचड़ आधा पानी है।
धरी हैं वां भीगे दाने से भरी सैकड़ों नांद।
करते हैं भैंसे और भैंसें उछल कूद और फाँद॥
(5)
वहाँ नहीं है मनुष्य कोई बंधन ताड़न करने को।
है सब विधि सुविधा स्वच्छंद विचरने को और चरने को।
वहाँ करे है भैंस हमारी क्रीड़ केलि किलोल।
पूँछ उठाए भ्याँ-भ्याँ रिड़के मधुर मनोहर बोल॥
(6)
कभी कभी कुछ चरती है और कभी कहीं कुछ खाती है।
कभी सरपतों के झुँडों में जाकर सींग लगाती है।
कभी मस्त होकर लोटे है तालाबों के बीच।
देह डुबोए थूथन काढ़े तन लपटाए कीच॥
(7)
कभी वेग से फदड़क-फदड़क करके दौड़ी जाती है।
हलकी क्षीण कटि का सबको नाज़ुकपन दिखलाती है।
सींग अड़ाकर टीले में करती है रेत उछाल।
देखते ही बन जाता है बस उस शोभा का हाल॥
(8)
पीठ के ऊपर झाँपल बैठी चुन-चुन चिचड़ी खाती है।
मेरी प्यारी महिषी उससे और मुदित हो जाती है।
अपने को समझे है वह सब भैंसों की सरदार।
आगे-पीछे चलती हैं जिस दम पड़िया दो चार॥
(9)
सब भैंसे आदर देती हैं सब भैंसे करते हैं स्नेह।
महिषि राज्ञिका एक अर्थ है तब खुलता है निस्संदेह।
तिस पर वर्षा की बूँदें जो पड़ती हैं दो एक।
तब तो मानो इंद्र करे है स्वयं राज अभिषेक॥
(10)
डाबर की गहरी दलदल में घुटनों तक है दूब खड़ी।
वहाँ रौंथ करती फिरती है लिए सहेली बड़ी-बड़ी।
पूँछ हिलाती है प्रसन्न मन, मनो चंवर अभिराम।
मक्खी-मच्छर आदि शत्रु की शंका का नहिं काम॥
(11)
पड़िया मुँह को डाल थनों में प्यार से दूध चुहकती है।
आप नेह से नितंब उसके चाटती है और तकती है।
दिव्य दशा अनुभव करती है करके आँखें बंद।
महा तुच्छ है इसके आगे स्वर्ग का भी आनंद॥
- पुस्तक : गुप्त-निबंधावली (पृष्ठ 666)
- संपादक : झाबरमल्ल शर्मा, बनारसीदास चतुर्वेदी
- रचनाकार : बालमुकुंद गुप्त
- प्रकाशन : गुप्त-स्मारक ग्रंथ प्रकाशन-समिति, कलकत्ता
- संस्करण : 1950
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