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भाई के साथ रहते प्रेम

bhai ke sath rahte prem

शचींद्र आर्य

शचींद्र आर्य

भाई के साथ रहते प्रेम

शचींद्र आर्य

और अधिकशचींद्र आर्य

    भाई के साथ रहते कैसे प्रेम किया जाता है,

    यह कभी हम सीख नहीं पाए।

    इसमें हुआ बस यह कि कभी किसी लड़की से अकेले नहीं मिल सका।

    जब हम मिले, भाई के साथ मिले।

    इस साथ में कभी उस एकांत को रच पाना

    मेरे लिए संभव ही नहीं हो पाया, जिसमें सिर्फ़ हम दोनों शामिल होते।

    इसके अभाव में कभी वह कह पाना भी बिलकुल असंभव था,

    जिसके मिलते ही अक्सर लड़के लड़कियों को कह जाते हैं।

    किसी से कभी कुछ कह पाने का दुख मुझे नहीं है।

    एकांत रच पाने की अपनी अक्षमता पर किसी तरह का क्षोभ है।

    बस सोचता हूँ,

    तब कोई ऐसा मिलना चाहिए था,

    जो भाई के साथ रहते, किसी लड़की के साथ प्रेम में रहना सिखा पाता।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शचींद्र आर्य
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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