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बेटी जो गई है काम पर

beti jo gai hai kaam par

प्रकाश मनु

प्रकाश मनु

बेटी जो गई है काम पर

प्रकाश मनु

और अधिकप्रकाश मनु

    बेटी गई है बाहर काम पर...

    हवाओ, उसे रास्ता देना

    दूर तक फैली काली लकीर-सी वहशी सड़को,

    तनिक अपनी कालिख समेटकर

    उसे दुर्घटना से बचाना।

    भीड़ भरी बसो,

    तनिक उस पर ममता वारना

    उसे इस या उस या उसके वाहियात स्पर्शों

    और जंगली छेड़छाड़ से बचाना।

    बेटी गई है बाहर काम पर

    दिशाओ, चुपके से उसके साथ हो लेना

    और शाम ढले जब तलक़

    वह लौटकर आती नहीं है घर,

    ख़ुद को उजला और पारदर्शी बनाए रखना।

    दिल्ली शहर के शोर, धुएँ

    और पागल कोलाहल,

    थोड़ी देर को थम जाना

    ताकि बेटी जो गई है बाहर काम पर

    शाम को

    ठीक-ठाक, उत्फुल्ल मन घर लौटे।

    हो मलिनता,

    चिड़-चिड़ेपन का बोझ

    उसकी कोमल आत्मा के गीले कैनवास पर...

    तनिक ध्यान रखना हवाओ,

    दूर तक फैली सड़को

    और दिल्ली शहर के अंतहीन कोलाहल,

    थोड़ी देर के लिए अपने भब्भड़ को समेटकर

    उसे रास्ता देना...

    ताकि बेटी जो गई है बाहर

    लौटे तो उसकी चाल में

    लाचार बासीपन का बोझ नहीं,

    चलने और बस चलते चले जाने की उमंग हो।

    अलबत्ता अभी तो बेटी घर से बाहर

    गई है काम पर

    और दिल बुरी तरह धक-धककर रहा है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : prakaash manu
    • प्रकाशन : वनमाली कथा,अप्रैल-2024

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