एक
तीन साल की बेटी
अपने रंगों का पिटारा खोल
अपनी ड्राइंग बुक में बनी गुड़िया में
भरने के लिए रंग, पूछती है बार-बार
उसकी फ़्रॉक का रंग, उसके बालों का रंग
और उसने जो अपने हाथ में पकड़ रखा है फूल
उसका चटक रंग
मैं सुलझाता जाता हूँ रंगों का उसका यह उलझाव
और देखता हूँ बेटी ज्यों-ज्यों अपनी कॉपी में भरती जाती है रंग
बाहर आसमान भी उसी अनुपात में
इंद्रधनुषी होता जा रहा है
दो
एक पल ओझल होने पर बेटी
घर की दीवारों पर
अपने रंगों से उकेर देती है
ढेर सारी बेढंग लकीरें
हम देखते हैं दीवार पर खींची हुई उन बेढब लकीरों को
एक क्षण को दुखी होते हैं
बेटी मुस्कुराती है और फिर उसकी मुस्कुराहट देखकर
दूसरे ही क्षण लगने लगता है
कितनी सूनी थी
इन बेढंग लकीरों के बिना ये दीवारें
तीन
बेटी जब होती है रंगों के उलझन में तल्लीन
तब कर लेती है अपने हाथों और कपड़ों को रंगीन
जब वह रंगों से हटती है दूर
तब ख़ुद ही अपने रंगीन हो चुके हाथों और कपड़ों को देखकर
होती है उदास
तब हम बिना खीझे उसे समझाते हैं जीवन में इन रंगों की अहमियत
चार
बेटी को सबसे ज़्यादा है अपने रंगों से प्यार
बेटी के पास हैं ढेर सारे रंगों के बक्से
और उन बक्सों में हैं रंगों के अलग-अलग शेड्स
बेटी जब भर रही होती है रंग
तब होती है तल्लीन
बेटी जब भर रही होती है रंग
तब होती है सबसे ज़्यादा ख़ुश
तब होती है उसके चेहरे पर अजीब-सी चमक
कई बार मैं उसके रंग के बक्सों से चुराकर रंग
अपने घर पर कूची फिरा देता हूँ
- रचनाकार : उमाशंकर चौधरी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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