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बेहत्थे

behatthe

प्रभात मिलिंद

प्रभात मिलिंद

बेहत्थे

प्रभात मिलिंद

और अधिकप्रभात मिलिंद

     

    निमाई के लिए

    उनके पास हाथों का कोई हुनर नहीं होता
    और तक़ल्लुफ़ जैसी कोई चीज़ तो हरगिज़ नहीं
    वे कभी हाथ हिला कर दोस्तों को रुख़सत नहीं करते 
    न किसी के ज़मीर को गिरेबान से पकड़ते हैं

    याचना में उनके हाथ कभी नहीं जुड़े
    और मसख़रों की बात पर 
    उन्होंने तालियाँ भी नहीं बजाईं 
    शायद इसलिए भी वे 
    इतिहास में जगह पाने से चूक गए 

    हालाँकि वे इसके ज़िक्र तक से बचना चाहते हैं 
    लेकिन चुके हुए अवसर की तरह 
    उन्होंने भी कभी किया होगा प्रेम 
    उनको भी तितलियाँ और फूल अच्छे लगते होंगे 
    अपनी स्मृतियों में सहेज कर रखे होंगे उन्होंने भी 
    अनलिखे... लेकिन दुनिया के कुछ 
    सबसे ख़ूबसूरत प्रेमपत्र 

    कितनी हैरत-अंगेज़ बात है
    कि सिर्फ़ हाथों की अनुपस्थिति की वजह से 
    उनकी मनुष्यता संदिग्ध मान ली जाती है 

    और अपने हिस्से का संताप जीते हुए 
    वे जीवन की तमाम नर्म और मुलायम चीज़ों से 
    बेदख़ल कर दिए जाते हैं 

    उनकी तक़लीफ़ें मुसलसल हैं... और बेआवाज़ 
    लेकिन भीतर सब कुछ एकदम सधा होता उनके
    हमारी आँखें और संभावनाएँ जहाँ तक भी जा पाती हैं 
    दरअसल उतनी ही दूर तक फैला होता है 
    उनका भी जीवन 

    यक़ीन कीजिए
    उनके भीतर भी ज़रूर कहीं होते हैं 
    हौसले और उम्मीद के दो हाथ
    ऐसा नहीं होता 
    तो वे आस्तीनों वाली क़मीज़ें कभी नहीं पहनते।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रभात मिलिंद
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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