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बेबसी

bebasi

अपने कंधे पर

अमृत कलश और विष पात्र का बोझ ढो रहे

ईश्वर से

मैंने स्वेच्छा से माँग लिया विष

सुना था प्रेम कहानी में डूब गए लोग

विष को अमृत कर दिया करते हैं

मगर ऐसा हुआ

विष ने अपना

आवरण चित्र नहीं बदला

ईश्वर नापता है ज्यामितीय कोण से

मेरी चाल

विवशता/समर्पण/मोह

और बार-बार

देता हुआ हिदायतें

एक बिंब में

हालाँकि एक और प्रतिबिंब में

मै और ईश्वर

बैठे हुए एक ही किनारों वाली परिपाटी पर

गुन-गुनाते हुए कोई कविता

मुस्कुरा उठते हैं

अपनी बेबसी पर

स्रोत :
  • रचनाकार : गुंजन उपाध्याय पाठक
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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