बाज़ार जब-जब जंगल से गुजरता है
bazar jab jab jangal se gujarta hai
बाज़ार जब-जब जंगल से गुजरता है
जंगल के निवासियों को
कुछ और कटा हुआ पेड़ मिलता है
कुछ जानवरों के शव मिलते हैं
बारूदों के बिना कुछ गोलियाँ मिलती है
जड़ों के बिना कुछ टहनियाँ
कुछ घोंसलों के अवशेष मिलते हैं
तो कुछ वयस्क मोर
जिनके पंख नहीं होते
नदियों के कुछ इलाक़े मिलते हैं
जहाँ पानी नहीं होता
इकट्ठा किया हुआ रेत के टीले होते हैं
कुछ पहाड़ मिलते हैं
जो ज़मीन में धसें होते हैं
भाषाओं में कुछ शब्द
और
संस्कृतियों में कुछ ऐसे संस्कार मिलते हैं
जो जंगल के नहीं लगते
बाज़ार जब-जब जंगल से गुज़रता है
थोड़ा-थोड़ा करके जंगल
थैलियों में पैक होता जाता है।
- रचनाकार : धनंजय मल्लिक
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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