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कुसुमित लतिका ललित तरुन बसि क्यों छवि छावत?

हे रसालगन! बौरि ब्यर्थ क्यों सोज बढ़ावत?

हे कोकिल! तजि भूमि नाहिं क्यों अनत सिधारी?

कोमल कूक सुनाव बैठि अजहूँ तरु डारी॥

स्रोत :
  • पुस्तक : मधुस्रोत (पृष्ठ 11)
  • रचनाकार : आचार्य रामचंद्र शुक्ल
  • प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी
  • संस्करण : 1971

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