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बरतन

bartan

वसीम अकरम

और अधिकवसीम अकरम

    आज माँ ने

    कुछ नए बरतन निकाले

    मैंने पूछा

    नए बरतन किसलिए माँ?

    माँ ने कहा

    आज ईद है न?

    कुछ हिंदू मेहमानों की दावत है

    उन्हीं के लिए ये हिंदू बरतन हैं

    वो हमारे बरतनों में नहीं खाते

    मैंने फिर पूछा

    तो फिर वो हमारे घर

    दावत पर आते ही क्यों हैं?

    माँ ने कुछ नहीं बोला

    अपना काम करती रहीं...

    मुझे अच्छी तरह याद है

    जब मैं और मेरे दोस्त

    पिछले होली के दिन

    एक दोस्त के घर दावत पर गए थे

    उसकी माँ ने भी हमारे लिए

    मुहल्ले के किसी मुस्लिम घर से

    बरतन मँगवाए थे।

    बरतन अब बरतन नहीं रहे

    इंसानों की तरह हमने इन्हें

    धर्म और जातियों में बाँट दिया है

    ये हिंदू बरतन

    ये मुस्लिम बरतन

    ये अलाँ बरतन

    ये फलाँ बरतन...

    स्रोत :
    • रचनाकार : वसीम अकरम
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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