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बर्फ़ पर चलता हुआ आदमी

barf par chalta hua adami

आत्मा रंजन

आत्मा रंजन

बर्फ़ पर चलता हुआ आदमी

आत्मा रंजन

और अधिकआत्मा रंजन

    बर्फ़ पर चलने की मजबूरी ढोता

    या इसके ठीक विपरीत

    छकता हुआ बर्फ़ का विलास

    बर्फ़ पर चलता है जब आदमी

    तो एकदम भिन्न होती है उनकी चाल

    बर्फ़ हो आस-पास

    और कहीं बीच में हो उसका घर

    तो पूरी की पूरी उसकी घर-गिरस्ती

    मय खेत-बाग़ीचों और ढोर-डंगरों के

    चलती है उसके साथ

    कब और कितनी पड़नी चाहिए थी

    और कितनी पड़ गई का समीकरण जोड़ता

    चलता है वह बर्फ़ पर

    बच्चों से लेकर मवेशियों तक के

    कटकटाते दाँत

    बजते हैं उसके कान में

    बर्फ़ानी हवाओं से भी अधिक

    सिहरा जाती है उसे

    पिछले बरस बर्फ़ में मिली

    लाशों की डरावनी स्मृति

    बर्फ़ की सफ़ेदी

    चौंकाने से भी अधिक

    चुभती है उसकी आँखों में

    इस सफ़ेदी से भी अधिक विस्मयकारी

    बर्फ़ के अनुभव हैं उसके पास

    कंधे पर लटकाए झोले की

    कम पड़ती चीज़ें जब

    झाँकती हैं उसकी जेब में

    तो छज्जे में दुबकी चिड़िया की मानिंद

    कोसने लगता है वह

    लंबी खिंचती बर्फ़बारी को

    बर्फ़ के आस-पास नहीं है जिसका घर

    वह अक्सर घर को

    बहुत पीछे छोड़कर आता है

    बेफ़िक्री ओढ़े मुग्ध और लुब्ध-सा

    चलता है वह बर्फ़ पर

    जानलेवा बर्फ़ानी ठंड की

    कहर ढाती ताक़त की समस्त हेकड़ी

    और दंभ का मज़ाक़ उड़ाती है—

    उसकी जेब की गर्मी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पगडंडियाँ गवाह हैं (पृष्ठ 46)
    • रचनाकार : आत्मा रंजन
    • प्रकाशन : अंतिका प्रकाशन
    • संस्करण : 2011

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