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बनफूल-सी लड़कियाँ

banphul si laDkiyan

अर्पण जमवाल

अर्पण जमवाल

बनफूल-सी लड़कियाँ

अर्पण जमवाल

और अधिकअर्पण जमवाल

    बनफूल खिलते हैं,

    बीहड़ों में, जंगलों में

    और ताल तलैयों के किनारे।

    उतनी ही मादकता और सुगंध लिए

    जितना कि घर के आँगन में खिले हुए फूल।

    जो चढ़ ना पाए,

    किसी ईष्ट के चरणों में,

    ना हो पाए किसी प्रेयस की अचकन के खीसे में सजा फूल!

    उनकी नियति में रहा,

    तपती धूप में मुरझाना,

    आँधियों से उलझकर,

    पत्ती, पत्ती बिखरना।

    बनफूल सरीखी रहीं,

    बिन ब्याही वो लड़कियाँ... 

    उम्र की दहलीज़ पर,

    साल दर साल 

    फूल-सा झरता रहा,

    जिनका सौंदर्य और यौवन!

    वंचित रहा, जिनका स्त्रीत्व!

    ममत्व की ईश्वरीय, अभिव्यांजनाओं से!!!

    स्रोत :
    • रचनाकार : अर्पण जमवाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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