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एक और बनारस

ek aur banaras

चंद्रबिंद

चंद्रबिंद

एक और बनारस

चंद्रबिंद

और अधिकचंद्रबिंद

    मुझे क्यों लगता है

    कि पटना की सभी सड़कें

    बनारस जाती हैं

    और मैं रोज़ सुबह

    उन पर निकल पड़ता हूँ

    आरा, मोहनिया होते हुए

    बनारस के लिए।

    बनारस मुझे

    अक्सर घेरता है

    किसी मियादी बुख़ार की तरह

    और थर-थर काँपने लगती है

    एक शहनाई

    कोई ढलने के लिए

    मुझमें कविता और कहानी बन

    क्या मैं पा सकता हूँ

    उस बनारस को एक साथ

    जैसा वह पटना से दिखता है

    जैसा वह आरा से दिखता है

    जैसा वह मोहनिया से दिखता है

    या फिर बनारस के उत्तर में बसे

    उस गाँव से

    जितनी दूरी पर कभी लमही था

    प्रेमचंद के समय में।

    मेरे गाँव की स्मृतियों से

    बना बनारस

    एकदम अलग है

    उसमें कबीर नहीं हैं

    पर उनके निर्गुण हैं

    उसमें प्रेमचंद नहीं हैं

    पर उनका गोदान है

    उसमें बिस्मिल्लाह खान नहीं हैं

    पर उनकी शहनाई है।

    मैं भागता हूँ

    अपनी स्मृतियों के बनारस से

    आज के बनारस के लिए

    भीड़ भरी सड़कों पर

    और मेरी यात्रा

    मुझे बार-बार ले जाती है

    पटना के बाँस घाट से आरा के सिन्हा घाट

    और बक्सर के रामरेखा घाट होते हुए

    बनारस तक

    मिलता हूँ मैं

    उस बोधिसत्व से

    जो अपने पंच परिव्राजकों को

    यह बता रहे थे

    कि इंद्रियों के नियंत्रण से

    दुख को नियंत्रित किया जा सकता है।

    क्या अस्सी घाट पर खड़े होकर

    अस्सी को देखा जा सकता है

    और रामनगर किले के भीतर से

    रामनगर को

    और गंगा के नाव में बैठे-बैठे

    गंगा।

    हम सालों से

    यही करते रहे हैं

    दशाश्वमेध की सीढ़ियों से

    दशाश्वमेध को देखते हुए

    और बनारस में बनारस को ढूँढ़ते

    कोई बताएगा मुझे

    अब बनारस में

    कितनी दूरी पर है

    चंपाबाई की संगीतमयी रवायतों से

    गुलज़ार रहने वाली दाल मंडी

    बनारस में

    वह क्या था

    कि एक चांडाल के तर्कों के सामने

    निरुत्तर हो जाते हैं

    उस युग के सबसे बड़े तत्त्ववेत्ता,

    क्या था

    जो बिस्मिल्लाह खाँ साहब को

    बाबा विश्वनाथ के पास ले जाता है,

    और क्या नहीं था

    जो कबीर को रात-रात भर

    जागना और रोना पड़ता है।

    बनारस तो हमारे भीतर

    अभी पूरी तरह

    बना भी नहीं था

    कि हम बनाने लगे

    एक और बनारस।

    स्रोत :
    • रचनाकार : चंद्रबिंद
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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