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बकरामंडी

bakramanDi

उद्भ्रांत

उद्भ्रांत

बकरामंडी

उद्भ्रांत

और अधिकउद्भ्रांत

    जामा-मस्जिद की बकरामंडी में

    हज़ारों बकरे सजे-धजे

    गले में चमकीली झालरें पहने

    सुंदर सींगों वाले

    कइयों के बँधी थी कलँगी

    स्वस्थ, हट्टे-कट्टे

    सफ़ेद, काले, चितकबरे

    अपने-अपने मालिकों के साथ

    क्या उन्हें मालिक कहना ठीक होगा?

    क्योंकि वहाँ तो

    बोलियाँ लग रही थीं—

    यह बकरा तीन हज़ार का

    वह काला हृष्ट-पुष्ट दस का

    और इधर जो

    चितकबरा बकरा देखते हैं आप

    इसकी क़ीमत पच्चीस हज़ार सिर्फ़

    अरे, आप घबरा गए?

    यह तो है मंडी

    हमारे पास ग़रीबों के लिए भी हैं

    और शहंशाहों के लिए भी

    जिसकी हो जैसी भी हैसियत

    ख़रीद सकता है उसी के माफ़िक़

    एक हज़ार से लेकर

    एक लाख तक!

    कितने सुदंर और भोले

    देख रहे थे वे

    एक-दूसरे को

    अपने तथाकथित मालिकों को भी कभी-कभी

    और फिर उन्हें भी

    जो लालायित थे ख़रीदने को।

    बेचने वाला

    अपने-अपने बकरे की

    नस्ल और उसके स्वास्थ्य को

    माल के विशिष्ट गुण की तरह करता पेश

    उसकी अधिक से अधिक क़ीमत बताता

    और सोचता—मन-ही-मन आशंकित होता

    क्या अपने बकरे की क़ीमत

    उसको इतनी मिल पाएगी

    कि वह इसी मंडी से

    कम क़ीमत वाला एक बकरा

    अपने बीवी-बच्चों के वास्ते

    ख़रीद सकेगा और

    अपने हिस्से की?

    ख़रीदारी करने जो आया था मंडी में

    वह ऐसा सोचता

    जो बकरा ख़रीद रहा हूँ

    उसका गोश्त होगा इतना लज़ीज़ क्या

    कि मेरे सभी मित्रों-संबंधियों को

    अगले साल तक

    यह क़ुर्बानी रहेगी याद?

    क्या सोच रहे थे मगर बकरे?

    एक हज़ार से

    एक लाख तक की क़ीमत वाले बकरे वे

    आपस में अपनी मूक भाषा में

    करते संवाद थे

    बोलती हुई आँखों के द्वारा

    भोलापन लिए हुए

    अपनी ही दुनिया में थे मगन

    जैसे उनका पिता

    मेले में उन्हें घुमाने के लिए

    नहला-धुला

    नए-नए कपड़े पहनाकर

    ले आया हो ताकि

    मेले की सैर

    सिद्ध हो उनके जीवन का यादगार अनुभव

    ये बच्चे ख़ुश थे

    क्योंकि उनहें मेला ले जाने से पूर्व

    अच्छी घास और सुस्वादु चारा खिलाकर

    उनकी क्षुधा की परितृप्ति की गई थी

    और वे हैरत से

    चारों ओर देखते

    गर्दनें घुमा-घुमा

    अपने ही जैसे और दूसरी नस्लों के भी

    हज़ारों बकरों को

    वे ख़ुश थे और जानते थे कि

    आज का दिन

    उनकी ज़िंदगी का

    सबसे स्मरणीय दिन होगा

    उनके लिए ही नहीं

    उन्हें बेचने वाले पुराने और

    ख़रीदने वाले

    नए मालिक के लिए भी!

    उन्हें पता था कि आज के दिन

    वे इतना महान कार्य कर जाएँगे

    कि उनके पूर्ववर्ती मालिक के घर में

    ख़ुशी के पल—

    दिनों और महीनों में बदलेंगे;

    और नया मालिक भी अपनी संतृप्ति में

    अपने सगे-संबंधियों,

    मित्रों और अतिथियों तक को

    गर्व से बनाएगा साझीदार।

    ये सभी बकरे

    जब आज प्रातः सोकर उठे तब

    क्या उन्हें मालूम था

    कि यह उनके जीवन का

    यादगार दिन है?

    या इसका पता

    उन्हें इस मंडी में आने पर लगा?

    या क़साई के हाथों से

    हलाल होते?

    या बहुतेरे भरपेटों के लिए

    तृप्ति का साधन बनने के बाद?

    इन बकरों की आँखें

    इनका भोला चेहरा

    इनकी सुंदर आकृति

    इनकी निश्छलता

    इनकी पवित्रता

    क़ुर्बानी का इनका जज़्बा

    ये सब पीछा कर रहे हैं

    मेरा, तुम्हारा, हम सबका

    वे पूछ रहे हैं

    कि क्या उनकी ज़िंदगी का यह दिन

    इसी तरह होना था महत्त्वपूर्ण?

    कोई और तरीक़ा था

    कि वे अपने जीवन को

    बना सकते सार्थक

    और पूर्व-निर्धारित

    संक्षिप्त अपनी आयु को

    पूर्ण कर लेते कुछ

    कर गुज़रने के वास्ते?

    क़ुर्बानी किसने दी—

    बकरे के मालिक ने?

    भूख से व्याकुल हो—

    अपनी संतान जैसे बकरे को

    बेच दिया जिसने?

    या जिसने महँगे दामों

    ख़रीदा उसको

    और बाक़ायदा क़ुर्बानी दी?

    बकरे ने क्या दिया?

    बकरे को क्या मिला!

    फ़क़त उसने अपनी

    मामूली-सी जान दी

    किंतु जान देकर भी

    क़ुर्बानी दे नहीं सका वह

    अपने अल्लाह को

    भाँति-भाँति के

    अपने रूपों से जिसने

    उसे दिया शुक्रिया!

    स्रोत :
    • पुस्तक : अस्ति (पृष्ठ 385)
    • रचनाकार : उद्भ्रांत
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस
    • संस्करण : 2011

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