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बाईस साल बाद के बाईस मिनट

bais saal baad ke bais minat

द्वारिका उनियाल

द्वारिका उनियाल

बाईस साल बाद के बाईस मिनट

द्वारिका उनियाल

और अधिकद्वारिका उनियाल

    पगडंडियों पे बरसों से कोई नहीं चला

    मिट्टी और पत्थर जंगली झाड़ियों और फूलों से ढके हुए थे

    तिमले के धारे में पानी

    फिर से फूट रहा था

    कुछ सालों से बारिश अच्छी हुई

    गाँव की चाची ने बताया!

    खेतों में अब धान नहीं सिर्फ़ घास थी

    खेती अब हमारे बस की नहीं

    भैंस पाल के अपना वक़्त गुज़र जाता है

    लोहार खाले के गोल महाराज

    अपने पोते को घुमा रहे थे

    दो साल पहले देहरादून में एक विक्रम ने टक्कर मार दी थी,

    घाव भरा नहीं अभी तक

    जाने-पहचाने चेहरे

    मैं अनजाना पथिक

    अपने पुरखों के नाम से अपनी पहचान बनाते

    पैर छूते, गले लगाते, आशीर्वाद लेते देते

    रिश्तों को फिर से ज़िंदा करते

    बाईस सालों बाद

    मैं रूमधार में था

    मेरा गाँव!

    जब बीस का था तब आया था

    आख़िरी बार

    वो घर, उसकी दीवार और पठ्यालों वाली छत दोनो गिर चुके थे!

    बस दादा दादी के कमरे वाली दीवार ने घर बचा रखा था

    जैसे बोल रहीं हों

    कि तुमने इस घर को छोड़ा होगा,

    हमने नहीं!

    धारे से पानी पिया

    मन और तन की जैसे तृप्ति हुई

    बहुत कुछ बदल गया था

    बहुत कुछ वैसा ही था!

    सड़क थी जिस पर कार चला आया था मैं

    बिजली का पँखा था

    दो किराने की दुकानें भी!

    वो धारे, वो खेत, वो पेड़ वो वहीं थे

    जैसे के तैसे

    कुलदेवी के नए मंदिर में फूल चढ़ा

    चचेरे भाई की दुकान से समान ले

    फिर आने का वादा दे

    भारी मन और रूँधे गले से

    वापस लौट आया मैं

    बाईस सालों की याद को

    बाईस मिनटों में समेट

    एक बार फिर

    उस चीड़ की एक छैंती लिए

    उससे झूठ बोल

    स्मृतियों को छोड़ पीछे

    आगे निकल आया मैं

    स्रोत :
    • रचनाकार : द्वारिका उनियाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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