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बहरेपन के बरक्स मेढ़क

bahrepan ke baraks meDhak

मधु सिंह

मधु सिंह

बहरेपन के बरक्स मेढ़क

मधु सिंह

और अधिकमधु सिंह

    एक लंबे समय की चुप्पी के बाद

    जब आप पूरी रात

    अपनी ख़ामोशियों के बीच सुनते हैं एक आवाज़

    बरसाती मेढकों की

    जो अक्सर बारिश के बाद

    रात के गहरे सन्नाटे में

    करते हैं टर्र-टर्र-टर्र

    निस्तब्धता और काली रात में

    एक हस्तक्षेप की तरह

    होते हैं दाख़िल

    मथते हैं एक विचार बन

    करते हैं मुक्त

    अकेलेपन के भय से

    ये आपको उकसाते हैं बोलने के लिए

    भयावह रात में उनकी निर्भय टर्र-टर्र है सिखाती

    कैसे सब कुछ है बोल देना

    जब आपको बोलने की हो मनाही

    जब पूरे देश में हो पसरा सन्नाटा

    कुर्सी से चिपके नेता

    कर रहे हो मनमानी

    जब राजा का भेष धर

    चुराने लगे हैं वे जन धन

    ऐसे में टर्र-टर्र देता है साहस

    सब कुछ कह देने का

    बिना भय के अँधेरे के साम्राज्य में घुसपैठ है टर्र-टर्र

    कल पूरी रात

    इन मेढकों के टर्र-टर्र के साथ

    मैं भी बुदबुदा रही थी नींद में

    बहुत कुछ अनकहा, अनसुना और अनसुलझा

    जिसे बयां नहीं किया था अब तक

    समय की ताक़ पर

    रख दिया था जिन शब्दों को

    आज वे बारिश बन

    बरस रहें हैं बूँद-बूँद

    टूट रहा है गूंगेपन का तिलिस्म

    और

    मेढ़क का टर्र-टर्र

    भेद रहा है राष्ट्रीय बहरेपन को

    स्रोत :
    • रचनाकार : मधु सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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