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बड़की अम्मा

baDki amma

रामजी तिवारी

रामजी तिवारी

बड़की अम्मा

रामजी तिवारी

और अधिकरामजी तिवारी

    बड़की अम्मा रहतीं हमेशा हाथ जोड़े

    भखौती के लिए,

    गोया दो हाथ और मिलना चाहिए था

    उन्हें मनौती के लिए।

    किसी बीमार के लिए करनी हो दुआ,

    किसी को गंतव्य पर पहुँचना हुआ।

    कोई हो जाए परीक्षा में पास,

    कोई रोज़ी-रोटी के लिए रहे उदास।

    जैसी अनेक भखौतियों के

    उनके पास अरमान थे,

    कोई घालमेल हो इसलिए

    हर-एक के अलग-अलग भगवान थे।

    हिंदू होने के नाते

    भगवानों का टोटा तो कभी नहीं था उनके पास,

    वे लगभग बराबर ही थे

    जितनी कि जीवन में मिली थी उन्हें साँस।

    मगर उन्हें तो माँगनी थीं भखौतियाँ

    गाँव-जवार के लिए भी,

    अपने घर के साथ

    मित्र-रिश्तेदार के लिए भी।

    कुछ ज़िद्दी परेशानियाँ जब नहीं सुलझतीं,

    तब बड़की अम्मा उन्हें लेकर अल्लाह के दरवाज़े पर पहुँचतीं।

    किसी ने ताज़िया में पायक बनकर

    किया हसन-हुसैन का आदर,

    किसी ने चढ़ाया मलीदा

    तो किसी ने चादर।

    बड़की अम्मा की भखौती

    फूलती रही फलती रही,

    हमारे बीच के पुल से

    भगवानों की आवाजाही भी चलती रही।

    कि एक दिन काल

    उनके फेफड़े में बैठ गया,

    वह तब निकला

    जब उन्हें ऐंठ गया।

    इस बीच विचलित हुआ हमारा ध्यान

    और पुल में गई दरार,

    अभी सँभल भी नहीं पाए थे

    कि टूटकर गिरने लगे अरार।

    बंद हो गई भखौतियों के

    बीच की आवाजाही भी,

    लग गई भगवानों के

    आने-जाने पर मनाही भी।

    सोचता हूँ

    इस जनम में बड़की अम्मा कहाँ होंगी,

    हमारी तरफ़ ही या वहाँ होंगी।

    नहीं-नहीं

    उनके पास तो बचा हुआ था ईमान,

    सच मानिए वे हर जनम में पैदा होंगी

    बतौर इंसान।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रामजी तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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