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बधाइयाँ, शुभकामनाएँ

badhaiyan, shubhkamnayen

बलराम शुक्ल

बलराम शुक्ल

बधाइयाँ, शुभकामनाएँ

बलराम शुक्ल

और अधिकबलराम शुक्ल

     

    एक

    हे मेरे हृदय
    हिरन के जैसी सुंदर और मुग्ध नैनों वाली की नज़र
    तुम पर पड़ी
    जिसके पुण्य प्रताप से तुझमें प्रेम का अंकुर फूटा
    तुम्हें बधाइयाँ—तुम्हें शुभकामनाएँ
    तुम जो अब तक लोहा पीटने से
    टूटे शरीर वाले लोहार की तरह थे–
    प्रेम अब तुम्हें एक कुशल स्वर्णकार में
    परिवर्तित कर रहा है
    तुम्हें बधाइयाँ—तुम्हें शुभकामनाएँ

    दो

    उसके वदन मंडल में स्थिर
    शोभा को देखकर
    अब तुम गगन के राजा चंद्रमा को भी
    अकिंचन मानते हो
    उसके वचनामृत का आचमन करके
    अब तुम स्वर्गीय अमृत को मृत मानते हो 
    तुममें यह अभूतपूर्व दृष्टि
    बड़े ही सौभाग्य से पैदा हुई है
    तुम्हें बधाइयाँ—तुम्हें शुभकामनाएँ

    तीन

    अब मल्लिका के फूलों की मान्यता
    तुम्हारी नज़रों में कुछ नहीं है
    कुमुद अब तुमको प्रमोद नहीं देते
    कमलों की चमक में
    अब तुम्हारी दिलचस्पी नहीं रही
    कुंद के फूल अब तुम्हें आनंदित नहीं करते
    प्रेम के अलौकिक तत्त्व के आस्वादन से
    तुम्हें सारी चीज़ें फ़ीकी लगती हैं
    तुम्हारी यह अरुचि
    बहुत ही रुचिकर है
    तुम्हें बधाइयाँ—तुम्हें शुभकामनाएँ

    चार

    किसी की कोमल पलकें 
    शल्य बनकर रातों में तुम्हें सालती रहती हैं
    किसी की दोनों भौंहें
    उठी हुए तलवार की तरह
    दिन भर तुम्हें डराती रहती हैं
    किसी की यादों की घुसपैठ से
    तुम्हारी संध्या की साधना वंध्या हो जाती है
    तुम्हारा यह उद्वेग मुझे अभिमत है
    तुम्हारा ऐसा वाला कष्ट समर्थनीय है
    तुम्हें बधाइयाँ—तुम्हें शुभकामनाएँ 

    पाँच

    माँ का पहला दूध पीकर मस्त नवजात
    जैसे कोई चेष्टा नहीं करता
    उसी तरह किसी आवश्यक कार्यों में भी
    तुम्हारी प्रवृत्ति नहीं हो पा रही है
    प्रत्येक पग तुम्हें प्राप्तव्य जैसा संतोष हो रहा है
    तुम्हारा यह स्पृहणीय आलस्य
    तमोगुण का अतिक्रमण कराने वाला है
    तुम्हें बधाइयाँ—तुम्हें शुभकामनाएँ

    छह

    उसके प्रेम के नाते पैदा हुए कलंक की चमक,
    जिसे छिपाना कठिन हो रहा है
    तुम्हारे शुद्ध चरित्र पर वैसे ही सुशोभित हो रही है—
    जैसे सफ़ेद कमलों पर काले भौरों की पंक्तियाँ
    जैसे श्वेत चंद्रमा पर कलंक
    और जैसे शिव के निर्मल कंठ पर हालाहल की काली लपट
    तुम्हें बधाइयाँ—तुम्हें शुभकामनाएँ

    सात

    तुम्हारा दुख सैकड़ों आनंदों जैसा है
    तुम्हारा विलाप हज़ार अट्टहासों से बढ़कर है
    तम्हारी नादानी में लाखों होशियारियों के लक्षण दीखते हैं
    तुम्हारा यह मौन करोड़ों भाषणों से ज़्यादा गौरवास्पद है
    प्रेम में जो तुम्हारा यह रूप खिला है
    वह असंख्य आश्चर्यजनक वस्तुओं के गर्व को हरने वाला है
    तुम्हें बधाइयाँ—तुम्हें शुभकामनाएँ

    आठ

    जिस प्रेम के उद्दीप्त होने पर
    रक्त दूध में,
    दूध अमृत में,
    काँटा फूल में 
    कठिनाई आसानियों में,
    व्यथाएँ आनंद में,
    श्रम विश्राम में बदल जाते हैं
    सारी वस्तुएँ प्रिय हो जाती हैं
    प्रिय स्वयं अपना स्वरूप हो जाता है
    वही प्रेम तुम्हें हो गया है
    तुम्हें बधाइयाँ—तुम्हें शुभकामनाएँ

    स्रोत :
    • रचनाकार : बलराम शुक्ल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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