एक
पूरे जंगल की ख़बर है
बढ़ई के बेटे को
वह ख़बरनवीस नहीं है
वह किसी को नहीं बताएगा वह ख़बर
जो छुपी है उसके सीने पर
वह थोड़ी देर में चल देगा
आरी उठाकर जंगल की ओर
एक-एक पेड़ से बतलावण करता
वह अचानक धर देगा
आरी के दाँतों को
किसी सूखी हुई डाल पर
पूरा जंगल थिरकता रहेगा
आरी की ताल पर
वन विभाग की ख़ाकी जीपों से
उतरते हैं वे
बढ़ई का बेटा पहचानता है
एक-एक दुश्मन का चेहरा
वह भिड़ जाएगा
अपनी घिसी हुई आरी लेकर
थोड़ी देर में
सुनाई पड़ेगी एक चीख़
वह किसी बढ़ई के बेटे की होगी
इसके बाद ही
कटता है कोई जंगल!
दो
लकड़ियाँ चीरता बढ़ई का बेटा कवि नहीं है
वह तब भी एक कारीगर है
जब उसकी आरी से संगीत जन्मता है
एक बढ़ई के बेटे का
दुनिया कुछ नहीं बिगाड़ सकती
वह चाहे तो बना सकता है
इस दुनिया से एक मेज़
वह बेमतलब नहीं होगा नाराज़
बिखेर नहीं लेगा बाल
इतनी देर में वह ठोक लेगा
दरवाज़े के जोड़
उसने नहीं बनाई कोई किताब
लेकिन किताब को गिरने से बचाया है!
- पुस्तक : बढ़ई का बेटा (पृष्ठ 25)
- रचनाकार : कृष्ण कल्पित
- प्रकाशन : रचना प्रकाशन
- संस्करण : 1990
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