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बदलती सभ्यता

badalti sabhyata

गोरधनसिंह सेखावत

गोरधनसिंह सेखावत

बदलती सभ्यता

गोरधनसिंह सेखावत

और अधिकगोरधनसिंह सेखावत

    अब / सोचने का वक़्त कहाँ

    वक़्त तो सभी के साथ / धमाके से फिर गया

    लोग ढूँढ़ रहे हैं / हर-एक पत्थर में सोना-चाँदी

    अब तो शुरू है / आदमी से आदमी की लड़ाई

    सारे धँस रहे हैं / हार-जीत की ज़िद में

    बस बजता रहता है / एक अलार्म सोते-जागते

    मौत का पता / ज़िंदा रहने का ठिकाना।

    चौतरफ़ बम की लपटों में / झुलसते दीखते हैं

    बच्चे, औरतें, नौजवान,

    गिरते-से लगते / सूर्य, चाँद और सितारे।

    तपती धरती की कोख में

    झुलस गए हैं कीड़े-मकोड़े, वन-राशि

    पखेरू, झरने, फूल और पर्वत

    भट्ठी है धरती और आकाश

    लगता है अब एक नया लिखा जाएगा

    इतिहास।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक भारतीय कविता संचयन राजस्थानी (1950-2010) (पृष्ठ 76)
    • संपादक : नंद भारद्वाज
    • रचनाकार : गोरधनसिंह सेखावत
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2012
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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