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बच्चे मारे जा रहे हैं

bachche mare ja rahe hain

अरमान आनंद

अरमान आनंद

बच्चे मारे जा रहे हैं

अरमान आनंद

और अधिकअरमान आनंद

    आसमान पर मक्खियाँ भिनभिना रही हैं

    सूरज निर्दोष के ख़ून का धब्बा है

    पृथ्वी मेज़ पर नचाकर छोड़ा हुआ एक अंडा है

    जिसके गिरकर फूटते ही

    सारा आदर्श बहकर बेकार हो जाएगा

    जिसके होंठों से अभी भी नहीं उतरा था

    माँ के दूध का रंग

    वह तीन साल का बच्चा मर गया

    सूडान में भुखमरी से मरा

    सीरिया से भागता हुआ मेडिटेरियन सी में डूबकर मरा

    पेरिस में गोलियों का शिकार हुआ

    और भारत में एक क़स्बे में

    उसके हिस्से की हवा छीन ली गई

    और दूसरे से भात

    वह अभी कहाँ जान पाया था

    कि रंगों का भी मज़हब है

    उसकी भी एक जाति है

    भगवा

    हरा

    और

    नीला

    सिर्फ़ रंग नहीं है

    एक राजनीति है

    दुनिया के कई खेल हैं

    गुड्डे-गुड़ियों

    और काठ की गाड़ियों से अलग

    कुर्सियाँ भी सिर्फ़ कुर्सी खेल

    तक सीमित नहीं है

    पिता के कंधे पर

    उसका मरा हुआ बच्चा

    पृथ्वी और पाप से भी अधिक भारी होता है

    पसलियों से अधिक आत्मा थकती है

    माँ से अधिक नियति रोती है

    अरे यम मृत बच्चे की इस लटक रहे हाथ की हथेली को थामो तो ज़रा

    अरे यम एक पल के लिए तो रुको तो ज़रा

    इस हथेली से मुलायम और मज़बूत

    भला दुनिया की कोई और चीज़ है क्या

    जाने से पहले

    एक बार अपनी माँ की उँगली को भींच लेते बच्चे

    देखो तुम्हारी माँ के स्तनों का नमकीन समंदर

    उसकी आँखों में उतर आया है

    जिस पर सिर्फ़ तुम्हारा हक था

    बच्चे

    अभी जबकि तुम्हारे सवालों से दुनिया को जूझना था

    और तुम ख़ामोश हो

    अभी जब तुम्हारी खिलखिलाहटों में इस उदास दुनिया को हँसना था

    और तुम ख़ामोश हो

    अभी जबकि तुम्हारे आँसुओं में

    बुद्ध अपनी करुणा का पाठ पढ़ते

    और तुम ख़ामोश हो

    तुम्हारी चुप्पी भारी पड़ रही है

    पृथ्वी को

    जहाँ से उठा लिए हैं धरती से तुमने अपने पाँव

    वहीं से धरती का कलेजा फट रहा है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अरमान आनंद
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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