बच्चा सँभालने वाली लड़की
bachcha sambhalne wali laDki
लड़की अपने परिवार से दूर रहती है—मालकिन के घर
रात में सोने से पहले करती है ब्रश और
सुबह सबसे पहले उठकर निपटती है सारे कामों से ताकि
उठें जब सब सोकर तो लड़की उनकी आँख की किरकिरी न बने
भरी दुपहर हो, शाम हो या आधी रात
लड़की की दिनचर्या बच्चे से है
बच्चे के सो जाने पर ग़ायब करना होता है ख़ुद को
रहना होता है ऐसे कि
मालिक-मालकिन को बना रहे एहसास कि
और कोई नहीं घर में सिवाय उनके
ऐसे समय लड़की को सपने भी दुबक कर आते हैं
घर की गंध और सहेलियों की बातें याद आती हैं उसे
जिन्हें वह अपने संग लिए बदलती है करवटें।
जब कभी घर जाती है लड़की,
बस्ती के लोग ख़ुश होते हैं उसे देख
उसके कपड़ों और सैंडिलों को निहारते हैं
आश्चर्य में पड़ जाते हैं सुनकर,
लड़की कार में जाती है बाज़ार और फ़िल्म देखने
सब कुछ के बाद भी लड़की खिली-खिली और ख़ुश-ख़ुश नहीं रहती
उदास और अनमनी रहती है लड़की
कहीं ऐसा तो नहीं कि
लड़की जब-जब स्वप्न में जाती हो
तब-तब बच्चे के रोने की आवाज़ उसके सपनों को तोड़ती हो।
- रचनाकार : नीलेश रघुवंशी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.