एक शरीफ़ औरत
एक शरीफ़ आदमी से
टेलीफ़ोन पर पूछ रही है
क्या प्रोग्राम है आज रात का?
चुप ही रहना है या इरादा है बात का?
आख़िर सिर्फ़ स्वप्न है या नदी?
नहीं नदी नहीं है सिर्फ़ स्वप्न है
यानी स्वप्न में नदी है और नदी में
काग़ज़ की नाव
नाव में भर गया है पानी
पानी को पीटता बच्चा
बच्चे को पीटती है माँ
माँ को पीटता है पिता
पिता को पीटता है व्याकरण
व्याकरण को पीटता है महापुरुष
महापुरुष को कोई नहीं पीटता
बच्चा रोता है
माँ सुनती है
माँ रोती है पिता सुनता है
रोता है पिता सुनता है व्याकरण
व्याकरण रोता है तो बदल जाता है महापुरुष
और जब बदल जाता है महापुरुष
तो बड़े-बड़े आश्चर्य लाता है
तब एक शरीफ़ औरत
एक शरीफ़ आदमी से
टेलीफ़ोन पर पूछ रही है
क्या प्रोग्राम है आज रात का?
आख़िर सिर्फ़ स्वप्न है या नदी?
नहीं नदी नहीं सिर्फ़ स्वप्न है
यानी स्वप्न में नदी है और नदी में
काग़ज़ की नाव
अब एक शरीफ़ आदमी
एक शरीफ़ औरत से कहता है
कि काग़ज़ की नाव काग़ज़ की रहने दो
इसमें हमारे समय के संबंध हैं!
- पुस्तक : निषेध के बाद (पृष्ठ 76)
- संपादक : दिविक रमेश
- रचनाकार : राजकुमार कुम्भज
- प्रकाशन : विक्रांत प्रेस
- संस्करण : 1981
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