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बात करनी है

baat karni hai

अनुवाद : अजय कुमार सिंह

सिद्धलिंगैया

सिद्धलिंगैया

बात करनी है

सिद्धलिंगैया

कैक्टसों के काँटों, बिना दूध वाली पटार

शरीर चीरने वाली भटकटैयों से

थोड़ी बात करनी है

उधार की रोशनी वाले चाँद से

छोटा-सा सवाल पूछना है

कोमल गुलाबों को छुड़ाना है

काँटों के चंगुल से

बिन पानी के कुएँ बिन आवाज़ के मंत्रिगण

शिकाकाई की झाड़ियों की तरह डोलते-फिरते सिपाही

दुनिया मैं तुम्हें देखना चाहता हूँ

भाषणों की तरह गड़गड़ाते सफ़ेद बादलों से

बहती नहीं हैं नदियाँ

पनपती नहीं है हरियाली

समयानुसार होती बरसात को रोक दिया है किसने

काट रहा है तारे इंद्रधनुष से कौन

किसने छुपा लिया है सूरज को पल्लू में

बिखरे हुए अंधकार को बढ़ा रहा है कौन

आम और कटहल की फलवानता तोड़कर

कौन जन रहा है आत्माओं को

जो स्त्री हैं पुरुष

संसार मैं तुम्हें देखना चाहता हूँ

बात करनी है तुमसे।

स्रोत :
  • पुस्तक : शब्द सेतु (दस भारतीय कवि) (पृष्ठ 4)
  • संपादक : गिरधर राठी
  • रचनाकार : सिद्धलिंगैया
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 1994

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