पानी गिरने की प्रबल संभावना देखते हुए
पीठ पर सफ़ेद अंडे लादे
चींटियों का विस्थापन शुरू हो गया
शायद उनका भी अपना मौसम विभाग था
अथवा दार्शनिकों का समूह
जो अफ़वाहों के दौर में भी दे रहा था
सटीक जानकारी
याकि कोई गुप्तचर जो बादलों की
सफल जासूसी कर रहा था
बादल गरज रहे हैं
बिजलियाँ आसमान से
चमकीले साँप की तरह लटक रही हैं
विकलता काँप रही है
पुराने लालटेन की बत्ती जैसी
यह उम्मीद और पश्चाताप की ही
मिली-जुली बेलौस भावना है
जो चींटियों के घर छोड़ने पर
पानी गिरने के प्रबल संकेत देती है
पानी गिरने के बाद का समय
त्रासदी का समय है
घर टूटी हुई छतरी का
नमूना भर होता है
पानी चूने की संभावना
बनी रहती है प्रत्येक दिन
सरल और कठिन दिनों में
भेद नहीं दिखता कुछ भी
यातनाओं के समुद्र में विलीन हो जाती है
प्रतिकार की एक नदी
अभिशप्त यह बाँस पर
फूल खिलने का समय है
करुणा से भरा कोई मनुष्य भी नहीं
जो सुबकते हुए हृदय से
बजा सके बाँसुरी
चूहों से कर सके उद्धार मनुष्यता का।
- रचनाकार : पीयूष तिवारी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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