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awtarn

अनुवाद : शंकर लाल पुरोहित

तब आँधी आई थी

आकाश के कोने-कोने में

मैं उतर रहा था लाठी थामे

बरामदे के बीच में,

मेरी शक्ति भी बुझ रही थी

धीरे-धीरे प्रकृति-प्रकोप में

मैं किंतु उतर रहा था काया रख

मेघ की फाँक ही फाँक में किंतु

बज्र और बिजली तब

तमाल की चोटी पर,

नग्न नृत्य के ताल में

टूट-टाट रहे हाथ-पाँव

डाल-पात के, कलरव हो रहा अतः

बासहीन चिड़ियों के दल का

अनायत्त झड़ के शर में कपि ही नहीं

लड़खड़ाकर गिरते रहे जीव-जंतु

सजीव ब्रह्मांड,

तब था हृदय के कोने-कोने में

वह निभृत आशा मर-खप गई बेतरतीब क्षितिज में

यूथ-यूथ पशु युद्ध दानवीय प्रमत्त लीला में

दिख रहे कुछ-कुछ दूरी पर

रेखा चित्र किसी के,

डारविन नाम उसका।

कोई एक ख़ुश था तब

लोमश देह रख

पैराशूट में बंद गद्दी पर

पासपोर्ट जेब में रखे

अदृश्य काग़ज़ पर चीख़ शुरू हुई सजीव राज में

क्या पता, हो सकता है

उसी का प्रकोप।

स्रोत :
  • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 264)
  • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
  • रचनाकार : अश्विनी कुमार मिश्र
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2009

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