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हमसब की जिंदगी से कुछ रोज अउर घटिगा।

hamsab ki jindgi se kuch roj aur ghatiga.

अनुज नागेंद्र

अनुज नागेंद्र

हमसब की जिंदगी से कुछ रोज अउर घटिगा।

अनुज नागेंद्र

और अधिकअनुज नागेंद्र

    हमसब की जिंदगी से कुछ रोज अउर घटिगा।

    येक साल अउर कटिगा।

    सोचे कि जनवरी मा कुछ काम काज करबइ।

    कुछ भूल हम सुधारब, कुछ कै इलाज करबइ।

    मलमल कै एक कुरता बाबू का ल्याइ देबय।

    चमड़ा कै एक पनही, सदरी सियाइ देबय।

    अम्मा कै आँखि अबकी पक्का खोलाइ देबय।

    धोती खटाऊ मिल कै, चप्पल लियाइ देबय।

    जाड़ा मा रजाई हम पुन्नई भराउब

    सोचे कि रुइउ कै कीमत जोरि पाउब।

    लरिका बिमार होइगा तौ ध्यान सबसे हटिगा।

    येक साल अउर कटिगा।

    फिर फरवरी मा बाकी लरिकन कै फीस फाटा।

    इस्कूल मा बेचारेन वै जाइँ रोज डाटा।

    वोहका जमा किहे तौ सइकिल बिगाड़ि डाइस।

    सुइटर फटा देखाइस जूता कै सोल बाइस।

    कापी किताब पेंसिल बस्ता मा जेब खाली।

    समझिन मा कुछ ना आवइ हम पेट कइसे पाली।

    गोंहूँ झुरात बाटइ सुनिके मूड़ चढ़िगा।

    डीजल कै दाम सुनतय सूगर हमार बढिगा।

    अम्मा कै गोड़ मिचुका सारा बजट उलटिगा।

    येक साल अउर कटिगा।

    जब मार्च आइगा तौ कुछ काम नवा सोचे।

    माँगब उधार बाढ़ी, कहि ना सके सकोचे।

    बिजुरी कै बिल बकाया कटिगा ओहर कनेक्सन।

    नेतन कै आवाजाही, फिर आइगा एलेक्सन।

    अपरैल लागि जइसे गरमी कै धूरि आँधी।

    सरिया कै भीति भसकी अब गाय कहाँ बाँधी।

    चारिउ मू कुल लगन बा सादी बियाह नेउता।

    इज्जत बचावा कइसेव हरदम मनाई देउता।

    बाबू मरेंन तौ चिरई पै बाझ हस झपटिगा।

    येक साल अउर कटिगा।

    अब नात कबीला सब जुटिगें घरे दुआरे।

    अँगना मा केहु भितरे बइठा केहु ओसारे।

    सबकय खयाल रक्खब काम बहुत भारी।

    सबकेहु का चायपानी भोजन कतौ सुपारी।

    तेरही तलुक तौ भइया हम होइ गये फटीचर।

    कंगाल देखि खोपड़ी से भागिगें सनीचर।

    बेंचइ का परा गोइंड़े कै खेत पाँच बिस्सा।

    तौ जाइ के निपटाये बाबू कै अपने किस्सा।

    मुल रोइ-गाइ कइसेव मामिला सलटिगा।

    येक साल अउर कटिगा।

    फिर आइ परा देखा जून जुलाई।

    भितरौ चुवइ, रोसइयाँ कै छान कस छवाई।

    मामा से अपने सरपत माँगे पचास पूरा।

    टरकाइ गयेन कहिके भइने परा बा झूरा।

    अरराइ के जौ बरसा, गरजा चमकिके बादर।

    समथर भै घर गिरिस्ती भहराइ परा भीतर।

    झिल्ली तनाइ कइसेव काटे हम महीना।

    रोये रकत कै आँसू, मुल ताने रहे सीना।

    लेकिन दइव कइत से अबकी तौ चित्त फटिगा।

    येक साल अउर कटिगा।

    कुछ हाल एहर सुधरी जबसे अगस्त आवा।

    बीमा कै चार पइसा बाबू के नाउ पावा।

    फिर भाय सितम्बर मा खोले दुकान छोटी।

    मेहनत से राति दिन कइ चलि जाइ नोन रोटी।

    खर्चा बढ़ा बहुत फिर अक्टूबर आइगा जब।

    तेउहार मां नवम्बर पूँजिव चबाइ गा सब।

    जाड़ा परब सुरू भै फिर आइगा दिसम्बर।

    लरिकन कै ओढ़ना-कपड़ा धंधा भवा बराबर।

    दुलहिन कै सौखि ओनहीं के अन्दरय सिमटिगा।

    येक साल अउर कटिगा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुज नागेंद्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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