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एक अवधी रचना

ek avadhi rachna

अनुज नागेंद्र

अनुज नागेंद्र

एक अवधी रचना

अनुज नागेंद्र

और अधिकअनुज नागेंद्र

    (किन्तु उन बंधुओं लिए नहीं है जो पढ़-लिखकर ईमानदारी पूर्वक अपने पेशे में संलग्न हैं)

    एहि संविधान की छाती मा हम ठोंके कइयव कील अही।

    बहुतय दहपट्ट वकील अही।

    होत भिनौखै सूट बूट हम साँटि कचेहरी आईथा।

    हाकिम हुक्काम अहइँ जेतना सबका जैरमी बजाईथा।

    सबका पूँछीथा चाय पान सिगरेट अउर रजनीगंधा।

    पहिले फंसाइ के पूँजी हम फैलाईथा आपन धंधा।

    टुटपुँजिहा फकटदलालन से हम आगे कइयव मील अही।

    बहुतय दहपट्ट वकील अही।

    नकल खतौनी नापजोख या खेते मेड़े कै झगड़ा।

    बैनामा खारिज़ दाखिल या मामिला होय कउनउ तगड़ा।

    कुछ तौ थानेन से निपटि जाइ कुछ की खातिर कोर्ट अहै।

    हमरे बस्ता पइ आइ परा तौ वोहका खुला सपोर्ट अहै।

    हर नवा मुवक्किल की खातिर हमहिन पूरी तहसील अही।

    बहुतय दहपट्ट वकील अही।

    कुछ रहा मामिला थान्हे के हम पहुँचि गए कोतवाली मा।

    एक नवा दरोगा आइ रहा कहेसि फँसब दलाली मा।

    हम कहे कि वरदी के बल पै काहे एतना गुर्रात अहा।

    तू बड़का हरिश्चंद्र बनिके कानून बेंचिके खात अहा।

    कुछ बतियै से बटुरि गवा कुछ देखइव माँ भड़कील अही।

    बहुतय दहपट्ट वकील अही।

    काल्है देखा हम एक मामिला पैमाइस कै पाइ गए।

    नेकपाल का पूजिपाजि के नोटिस भाए दबाइ गए।

    फिर नापजोख माँ दुइ लाठा दूसरी कइती घुसवाय दीन।

    चिल्लान बहुत, नाचेस-कूदेस मुल तबतक सब निपटाय दीन।

    छीनाझपटी माँ बाझ अही नोंचै-खोंचै माँ चील अही।

    बहुतय दहपट्ट वकील अही।

    ना कउनव काम असंभव बा ना तौ केहुका नहिकारी हम।

    झूठ-मूठ, छल-कपट, लुच्चई भरे अही मक्कारी हम।

    हर एक चीजे कै दाम अलग जे जइसे चाहै काम करी।

    पइसा पाई तौ झट्ट मोकदमा भगवानौ के नाम करी।

    जे फौरन नगद ना पकड़ावै वोकरे कामे मा ढील अही।

    बहुतय दहपट्ट वकील अही।

    एकदिन हम तू-तू-मैं-मैं मा कइयव धारा लगवाय दीन।

    दूबे का कुछ पइसा दइके फरजी मेडिकल करवाय दीन।

    जे अहै सिपाही हल्का कै सौ रुपिया लाठी फिक्स अहै।

    हर गारी पइ रुपिया पचास, हज्जार मा दुइनव मिक्स अहै।

    अइसेन कामे मा कुटिल अही निरदई अही असलील अही।

    बहुतय दहपट्ट वकील अही।

    धनिया, मिर्चा, सब्जी, रासन, सबमा लेई कंसेसन हम।

    रेक्सा पै बइठी अंटि जाई दुइ रुपिया मा इस्टेसन हम।

    हर दफ्तर माँ लड़ि जाई जौ देहीं पै करिया कोट रहइ।

    कुलतिव हमरै हेकड़ी चलै हर मनई बनिके छोट रहइ।

    हम झूंठ-फुरा कै बीसन ठी झोरा माँ धरे दलील अही।

    बहुतय दहपट्ट वकील अही।

    लरिका-बच्चा सलकंत नहीं ना सोइ मिलै ना खाय मिलै।

    एहि तरा कमाई बिरथा बा जेहमाँ दुखियन कै हाय मिलै।

    एहि दलदल वाले रस्ता से अपुना का मोड़ा चाहीथा।

    फकटदलाली कै धंधा अब बिल्कुल छोड़ा चाहीथा।

    हमरेउ दीदा माँ सरम अहै, जिन समझै केहू कुसील अही।

    बहुतय दहपट्ट वकील अही।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुज नागेंद्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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