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अवसाद की घाटियाँ

avsad ki ghatiyan

ऋतु त्यागी

ऋतु त्यागी

अवसाद की घाटियाँ

ऋतु त्यागी

और अधिकऋतु त्यागी

    वह पत्तियों की सरसराहट सुन नहीं पाते

    और ना आकाश में उगते चंद्रमा की खटखटाहट,

    उन्हें अपने चमकते जूते लुभाते हैं

    कंधों की बढ़ती चौड़ाई को भी

    यह अपनी उपलब्धि की

    जीवा समझकर अपने वृत्त पर गिरा देते हैं,

    अपने ही आँसुओं पर आसक्त

    इन्हें अपनी उपस्थिति की विराटता पर गर्व है

    कुंठाओं में गुँथे इनके फंदे

    गाँठों में तब्दील हो जाते हैं

    और ये जीभ फटकारते हुए

    अवसाद की घाटियों में उतर जाते हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : ऋतु त्यागी
    • प्रकाशन : हिंदवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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