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...और जो मैं खो चुका हूँ

aur jo main kho chuka hoon

अविनाश मिश्र

अविनाश मिश्र

...और जो मैं खो चुका हूँ

अविनाश मिश्र

और अधिकअविनाश मिश्र

    उन कविताओं के बारे में क्या कहूँ

    वे ऐसे ही नहीं अभिहित हुई थीं

    जैसे यह—एक आत्मप्रलाप में विन्यस्त होती हुई

    एक प्रकाश्य-प्रक्रिया के समय

    वे एक सायास हनन का शिकार हुईं

    और गुज़र गईं अनंत में

    मेरे भीतर बह रहा रक्त जानता है

    कि वे अनंत से नहीं आई थीं

    उनका प्रतिरूप केवल स्मृति में सुरक्षित था

    इस हनन से पूर्व

    वे लगभग याद थीं मुझे

    अब उनकी पंक्तियों का क्रम मैं भूलने लगा हूँ

    अब मात्र शीर्षक याद हैं उनके

    अब उनके अस्तित्व के विषय में मेरे विचार

    ईश्वर के अस्तित्व के विषय में

    मेरे विचारों से मिलते-जुलते हैं

    कहीं कोई विरोध नहीं

    इस सहमत समय में

    उन्हें खोकर ही उनसे बचा जा सकता था

    लेकिन इस बदलाव ने मेरी मासूमियत मुझसे छीन ली है

    इस स्वीकार को अस्वीकार करने की

    मैं भरसक कोशिश करता हूँ

    लेकिन कर नहीं पाता

    बस इतना ही सच हूँ

    मैं स्थगित पंक्तियों का कवि

    तुम्हें खोकर

    यूँ होकर

    स्रोत :
    • रचनाकार : अविनाश मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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