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अशांत लटकती हुई झोल

ashant latakti hui jhol

माधव शुक्ल मनोज

माधव शुक्ल मनोज

अशांत लटकती हुई झोल

माधव शुक्ल मनोज

और अधिकमाधव शुक्ल मनोज

    वह चारपाई बुनती हुई

    अपना दुख

    लपेट रही है सीरा पाटियों में

    रस्सी की तरह।

    शायद मचेवा

    उसका संपूर्ण भार

    लाद लेंगे अपने ऊपर।

    अड़वान खींच लेगी

    इसकी अशांत

    लटकती हुई झोल।

    खिंचे हुए तानों-बानों में

    तन कर सपाट

    बिछ जाएगी चारपाई।

    तभी उसकी आत्मा में

    शरीर में

    नींद में

    लिपटे हुए कुछ क्षण

    उसे लगेंगे अपने।

    जो बुनेंगे चारपाई की तरह

    जीने के सपने।

    स्रोत :
    • पुस्तक : साक्षात्कार 131-133 (पृष्ठ 47)
    • संपादक : मनोहर वर्मा
    • रचनाकार : माधवशुक्ल मनोज

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