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प्रार्थना : आकाश के प्रति : खिड़की से

pararthna : akash ke prtih khiDki se

अनुवाद : चक्रेश्वर भट्टाचार्य

नवकांत बरुआ

नवकांत बरुआ

प्रार्थना : आकाश के प्रति : खिड़की से

नवकांत बरुआ

और अधिकनवकांत बरुआ

    आकाश तुम्हारे नील रंग को मेरी व्यथा से

    और नील कर करुण बनाने की कामना

    आज क्षमा करो, एक-आध दुःख की बात से

    आत्म-रति के दिन गिनो!

    काल-पुरुष की तलवार ने कच्चे सूर्य के कक्षपथ में धार पाई है,

    अमा-निशा की उल्का की आग शाम की कविता में है।

    वंध्या ज्ञान की गुफा मे प्राण औषधि का अनुपान ढूँढ़ना

    विफल वैद्यपन है। तुम्हारी नीलिम निहारिका का कण उसमें दो।

    गुफा की रोशनी अपरिचित क्यों; प्रतिसरण से कुचित

    मैं जानता हूँ, आज संध्या की मरी हुई सूरज की वह वर्णाली है

    भारी हवा। हज़ारों साँपों के विष का निश्वास संचित

    रात 'नैबूला' को तुष्ट करने वाला नील, हे आकाश, वहाँ डालते हो

    मेरे मस्तिष्क में हज़ारों अनाथ शिशु-सूर्यो के कलरव हैं।

    सैकड़ों जाग्रत स्वप्न-शिशुओं के दिवा-स्वप्न की कामना है,

    अपनी धमनी में उनका स्पंदन मैं अनुभव करता हूँ,

    मेरे निःश्वास में अजान शिशु की मरण-यंत्रणा है।

    अगर निरुपाय मरण के नशे में प्राण-उत्सव मुखर होते हैं-

    (भीगी दीवार मे वह किसका लेख है? जो दिन का हाथ पोंछ देता है)

    तो जमा-खर्च की काट-छाँट तुम्हारे नील में ही मिट जाए,

    इतनी तुच्छ मृत्यु के लिए हेडलाइन में जगह नही है।

    हे आकाश, मेरी प्रार्थना सुनो, अगर यह विलास निरुपाय है,

    तो कौन-से सवाल का इंगित है कि अंगार की तरह चाँद टेढ़ा है—

    हमारा आकाश एकदम छोटा है, तुम्हारा आकाश दो।

    (बंद घर की खिड़की के फ़्रेम में रात का आकाश अंकित है।)

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 11)
    • रचनाकार : नवकांत बरूआ
    • प्रकाशन : साहित्य अकादमी
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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