धनशिरी के लिए दो स्तवक
dhanashiri ke liye do stawak
नस-नस में मेरी सरसरा उठी धनशिरी।
डि-मा के तट पर बेहाल हमारे नन्हें-नन्हें बच्चे-कच्चे
चढ़ाव की ओर या उतार की ओर निकल गया वह
‘हाबुङीया बरा’
ज़ुल्म ढा कर, नाकों चने चबवा कर।
महङ का नमक है नमकीन ख़ून से
मरङी का लाल रूमाल क्या सकेगा पोंछ उसे?
गुड़ जुटाने वाले उन गाँवों में
राज-सौदागर अब कलों में पेराई करते इंसानों की।
ज़्यादा कसो मत ढोलों की डोरियों को
टूट जाएँगी
रखों ज़रा ढीली ही
‘मुहब्बत के झरने की सीधी उठान’ पर
जोहते रहें कब तक बाट-री
नस-नस में हमारी सरासरा उठी धनशिरी।
सरसरा उठी हमारी नस-नस में धनशिरी।
कार्तिक महीने की कोहरे भरी रात को
सुन रहे नाव की चोटी पर
रेल की धुन पर मेथोन ओजा के ढोलों की आवाज़ें।
हल जोत किनारे की परती पर भैंसों से उजड़—
साफ़ हो गए बरूवा-फुकन सारे।
पनपा कर गहरा सारे।
उन्नीस राधाओं के गलों में विरह के माल्य।
एक उमा के स्वेदकन पोंछने में
पुँछ गया माथे का सिंदूर।
रघुनाथ और खहुला घटवार
किसे किधर ले गए उतार पार लहरी
नस-नस में सरसरा उठी धनशिरी।
धनशिरी या धनश्री ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी है। अनेक ऐतिहासिक घटनाएँ उसके तट पर हुई हैं।
उन्हीं में से कुछ घटनाओं और व्यक्तियों को प्रतीक रूप में इस कविता में प्रस्तुत किया गया है।
*डि-मा : बड़ो जनजाति में प्रचलित धनशिरी का नाम।
*बेहाल हमारे नन्हें-नन्हें बच्चे-कच्चे : धनशिरी के तट पर मुख्यत: बड़ो जनजाति के लोगों की आबादी है।
पहले उन पर बड़ा उत्पीड़न हुआ था, उन्हें मारा और उजाड़ा गया था।
*हाबुङीया बरा : आहोम-ज़माने का उस अंचल का एक शासक, जो बड़ा अत्याचारी था।
स्थानीय लोकगीतों में उसके उत्पीड़न की याद बनी हुई है।
*महङ : एक स्थान का नाम, जहाँ पहले नमक बनता था।
*मरङी : एक स्थान का नाम, जहाँ समाजवादी-साम्यवादी आंदोलन चला था।
*गुड़ जुटाने वाले उन गाँवों में : उस अंचल के गाँवों से आहोम राजाओं के लिए गुड़ भेजा जाता था, अब
वहाँ चीनी का कारख़ाना है। शोषण का प्रतीक।
*ढोल : मस्ती के त्योहार बिहु आदि के अवसरों पर बजाए जाने वाले ढोल।
*बाट : बिहु गीत की एक सांकेतिक कड़ी का संदर्भ।
*नाव की चोटी पर : स्वतंत्रता-आंदोलन के ज़माने में धनशिरी के तट पर एक रेल को आंदोलन-
कारियों ने उलट दिया था। वे नाव से धनराशि पार कर वहाँ पहुँचे थे।
*मेथोन ओजा : धनशिरी अंचल का रहने वाला ढोल बजाने में निपुण एक नामी उस्ताद।
*बरुवा-फुकन : आहोम-ज़माने के सामंत-प्रशासक।
*पनपा कर गहरा : बिना बीज डाले-बोए, अपने आप उगने वाले पौधे। अपने आप बन जाने
वाले परंपराहीन नेता—शासकों के प्रतीक।
*उन्नीस राधा : मेथोन ओजा जहाँ जाता था वहीं एक विवाह कर लेता, फिर उसे वहीं छोड़
आता। उसने ऐसे उन्नीस विवाह किए थे। उसी को कृष्ण-राधा का प्रतीक
लिया गया है।
*उमा : असम में अगस्त आंदोलन के शहीद कुशल कोंवर की कोमलांगी पत्नी के लिए
प्रयुक्त प्रतीक।
*रघुनाथ : फाँसी पर चढ़ते शहीद कुशल कोंवर ने कहा था—‘पार करो रघुनाथ, संसार-सागर।’
*खहुला घटवार : धनशिरी के घाट का एक नाव वाला जिसने क्राँतिकारियों को पार उतार
दिया था, पर कुशल कोंवर रह गए थे और अँग्रेज़ सिपाहियों के हाथों पकड़े
गए थे।
- पुस्तक : भारतीय कविताएँ 1985 (पृष्ठ 35)
- संपादक : बालस्वरूप राही
- रचनाकार : नवकांत बरुवा
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
- संस्करण : 1990
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