अपनी आसन्नप्रसवा माँ के लिए तीन गीत
apni asannapraswa man ke liye teen geet
अशोक वाजपेयी
Ashok Vajpeyi
अपनी आसन्नप्रसवा माँ के लिए तीन गीत
apni asannapraswa man ke liye teen geet
Ashok Vajpeyi
अशोक वाजपेयी
और अधिकअशोक वाजपेयी
काँच के टुकड़े
काँच के आसमानी टुकड़े
और उन पर बिछलती सूर्य की करुणा
तुम उन सबको सहेज लेती हो
क्योंकि तुम्हारी अपनी खिड़की के
आठों काँच सुरक्षित हैं
और सूर्य की करुणा
तुम्हारे मुँडेरों भी
रोज़ बरस जाती है।
जीवित जल
तुम ऋतुओं को पसंद करती हो
और आकाश में
किसी न किसी की प्रतीक्षा करती हो—
तुम्हारी बाँहें ऋतुओं की तरह युवा हैं
तुम्हारे कितने जीवित जल
तुम्हें घेरते ही जा रहे हैं।
और तुम हो कि फिर खड़ी हो
अलसायी; धूप-तपा मुख लिए
एक नए झरने का कलरव सुनतीं
—एक घाटी की पूरी हरी महिमा के साथ!
जन्मकथा
तुम्हारी आँखों में नई आँखों के छोटे-छोटे दृश्य हैं,
तुम्हारे कंधों पर नए कंधों का
हल्का-सा-दबाव है—
तुम्हारे होंठों पर नई बोली की पहली चुप्पी है
और तुम्हारी उँगलियों के पास कुछ नए स्पर्श हैं
माँ, मेरी माँ,
तुम कितनी बार स्वयं से ही उग आती हो
और माँ, मेरी जन्मकथा कितनी ताज़ी
और अभी-अभी की है!
- पुस्तक : शहर अब भी संभावना है (पृष्ठ 13)
- रचनाकार : अशोक वाजपेयी
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
- संस्करण : 2004
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