अपने को कफ़न में लपेटकर
apne ko kafan mein lapetkar
शोक मनाने के लिए अस्वीकार करता हूँ
मैं अपना ही
(व्यवसायी होकर भी)
दाग देने से अस्वीकार करता हूँ
आदमी-आदमी फाड़कर देख चुका हूँ मैं
ख़ुद फटकर देख चुका हूँ मैं
आम की गुठली के अंदर योगासन में कीड़ा मर गया
यह प्रसव-वेदना झूठी है
अभी भी जन्म न ले सका आदमी
हाँ, आदमी नहीं जन्म ले सका
कथित पिता ने मात्र मुंडन किया चौकोर
मुझे माँ के गर्भ में
यहाँ मैं इसीलिए
स्वजन द्वारा साना हुआ दही-चूड़ा खाता हूँ
और अपने ही को
साँड़ से लड़ने वाले के भैंसे-सा खदेड़ते हुए चलता हूँ
पछतावा नहीं किया है मैंने विक्षिप्त होकर
न्याय नहीं माँगा है मैंने
लाश उठाने से पहले
रोती हुई बूढ़ी माँ के चिथड़े फेंकने की जगह
लाश के
खंडित अवशेष न फेंक पाकर
पीठ में
सिसिफस-सा कुछ ढोते हुए
—यह बोझ—
उतारना नहीं खोजा है मैंने,
जन्म से पहले ही निश्चित थी मेरी मौत
यह एक जोंक की मौत—
ख़ुद ही गाँठ बनकर
अन्यथा मुझे बलात् ही आत्महत्या करनी पड़ती
न किए गए अपराध के लिए
यह अपराध इसीलिए
मैं अर्थहीन जीवित हूँ
व्यर्थ जीवित हूँ,
मात्र जीवित हूँ
ख़ुद को ही कफ़न की तरह ओढ़कर।
- पुस्तक : नेपाली कविताएँ (पृष्ठ 25)
- संपादक : सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
- रचनाकार : कृष्णभक्त श्रेष्ठ
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 1982
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