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अनुपस्थित समय

anupasthit samay

महेश आलोक

महेश आलोक

अनुपस्थित समय

महेश आलोक

और अधिकमहेश आलोक

    उसका कुल समय हमारी पृथ्वी का कुल समय नहीं है

    अगर हम कहें कि वह सेकेंड के अरबवें हिस्से जितने समय से

    कम समय में उतरता है चौबीस घंटे की सांसारिक संरचना में

    और अपने सूरज से लाल गुलाब बनकर खेलता है उस छंद में

    जो जीवन का अनुष्टुप छंद है

    तो अनुभव के इस तर्क से कह सकते हैं कि उसकी चमक

    गुलाब की चमक जैसी है

    गुलाब की चमक से हमारे सपने चमकने लगते हैं

    जहाँ तक उसकी मुलायमियत का सवाल है वह

    ख़रगोश के रोएँ जितना मुलायम है

    इसका यह अर्थ क़तई नहीं है कि वह कठोर नहीं है

    अगर उसकी कठोरता को किसी उपमा में बाँधना पड़े

    मसलन हीरे की उपमा ही उपयोगी जान पड़े

    तो हीरे को मध्यकालीन मुकुटों और प्रमादों से

    बाहर निकालना ज़्यादा ज़रूरी है

    काम तो यह कहे बिना भी चल सकता है कि

    वह हवा जितना पारदर्शी है

    और ईश्वर की तरह बूढ़ा होकर सेवानिवृत्त नहीं हुआ है

    जैसे काम तो यह कहे बिना भी चल रहा है

    कि वह शब्दों के अंतराल में चुपचाप बैठता है और कभी-कभी

    अपने पंख से धूल और मकड़ी के जाले जैसी चीज़ों को साफ़ कर देता है

    उसका स्वभाव ही परोपकार का है

    इसलिए उसका धन्यवाद करना उसका अपमान करना है

    इस अर्थ में वह पहला और अंतिम समर्थ संत है

    अगर आप मुझ पर सैद्धांतिक होने का आरोप लगाएँ

    तो यह कहने में मुझे ज़रा भी हिचक नहीं है कि वहाँ

    प्रचलित अथवा विशिष्ट अर्थों में अनुभव का अध्यात्म नहीं है

    जहाँ उसका कुल समय है

    वहाँ बुध के बाद वृहस्पति आने का नियम नहीं है

    स्रोत :
    • रचनाकार : महेश आलोक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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