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आंतरिक

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अरुण कमल

अरुण कमल

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अरुण कमल

और अधिकअरुण कमल

    नहीं, कोई तुम्हें कुछ दे नहीं सकता

    सब कुछ पाने के बाद भी बेचैन रहोगे

    अपने कवच अपने बख़्तरबंद में दबा तुम्हारा दिल

    धौंकेगा भाँथी-सा अंगारों को सुलगता

    और एक भँवर उठेगी मरोड़ती भीतर।

    सब कुछ पाने के बाद भी कितना ख़ाली

    तुम्हारा हाथ भग्न लकीरों से भरा

    और तुम्हार अंतर एक खाली छत्ता

    वक्ष पर टँगे तमग़े धँसेंगे भीतर मांस में

    सब कुछ पाने के बाद भी तुम इंतज़ार करोगे

    रात के अँधेरे में लंबे सुनसान गलियारे के पार

    किवाड़ के पीछे उस साँवली स्त्री का

    जो पता नहीं आज भी आएगी या नहीं

    और तड़केगा रोम-रोम बलतोड़ की पीड़ा से

    तसर वस्त्र के भीतर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अरुण कमल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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