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अंतिम कविता

antim kawita

राजेंद्र धोड़पकर

राजेंद्र धोड़पकर

अंतिम कविता

राजेंद्र धोड़पकर

और अधिकराजेंद्र धोड़पकर

    यह मेरी अंतिम कविता हो सकती है

    इसके बाद शायद मैं मर जाऊँगा

    यदि नहीं मरा तो संभव है

    मैं इतनी दूर यात्रा पर निकल जाऊँ

    कि स्मृतियाँ वहाँ तक पहुँचती हों

    इतनी दूर जगहें दुनिया में ज़रूर होंगी

    या ऐसा हो कि मैं दीमक बनकर

    लकड़ी के किसी पुराने खंभे में उसे कुतरता रहूँ

    या बस ऐसे ही मैं कविता लिखूँ

    संभव है

    आजकल कुछ भी असंभव नहीं दुनिया में

    ऐसा मुझे तब लगा जब मैं अपने बचपन की

    एक सड़क पर पहुँचा एक ढेला

    जो मैंने बचपन में फेंका था वहीं हवा

    में टँगा था

    वह एक पत्थर सड़क किनारे वैसे ही पड़ा था

    जिससे ठोकर खाकर मेरे घुटने छिले थे

    पर तभी मैंने देखे फूल; फूल जिन्हें खिलना था

    कल परसों या एक साल बाद

    फूल बोले हमें नहीं खिलना है, हम रहेंगे,

    बादल में, मिट्टी में, जहाँ हम हैं वहीं ठीक हैं

    हमें नहीं खिलना इस दुनिया में

    और मुझे लगा कुछ भी असंभव नहीं

    दुनिया की हालत ऐसी है कि किसी भी वक़्त

    कोई भी कवि तारे-सा टूटता दिखाई दे

    सकता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दो बारिशों के बीच (पृष्ठ 61)
    • रचनाकार : राजेंद्र धोड़पकर
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1996

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