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अंतिम बचाव

antim bachaw

मंजुला बिष्ट

मंजुला बिष्ट

अंतिम बचाव

मंजुला बिष्ट

और अधिकमंजुला बिष्ट

    बंधु!

    कैसे करोगे मुक़ाबला

    अपने पीछे भागती वैचारिक हिंसक भीड़ का

    चिल्लाओगे तो वे तत्क्षण सजग हो उठेंगे

    चीख़ोगे तो वे मासूम अनभिज्ञ बन जाएँगे

    सार्वजनिक मान-मनौवल की तो ख़ैर

    वे नौबत ही आने देंगे

    तो फिर बचाव क्या है, बंधु!

    अंतिम बचाव!!

    बचाव वही है

    जो बचपन में माँ की मार से बचने के लिए करते थे

    उस हिंसक भीड़ के सम्मुख नतशिर हो बैठ जाना!

    यदि उसके सारे हथियार लज्जित भी हों

    तो भी तुम्हारे बचने की एक फ़ीसदी संभावना है!

    भीड़ में से कुछेक ज़रूर

    या तो तुम्हें छोड़ देंगे

    या तुम्हें छोड़ने पर दंभी हुंकार भरकर प्रशस्ति-पत्र पाएँगे

    भीड़ का प्रहार एकमेव होता है

    लेकिन टूटते वे कड़ियों में ही हैं

    इसलिए डरो नहीं... मुक़ाबला करो, बंधु!

    स्रोत :
    • रचनाकार : मंजुला बिष्ट
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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