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आँसू

ansu

मंगलेश डबराल

और अधिकमंगलेश डबराल

    आँख की कोर पर जो आँसू अटके हुए हैं

    और गिरने-गिरने को हैं लेकिन गिरते नहीं हैं

    उन्हीं में एक उम्मीद बची हुई है

    उनमें एक दुनिया झिलमिलाती है और उसके हादसे

    जो तुम्हारे आस-पास हुए हैं या तुमसे कुछ दूर

    शायद फिर कोई मासूम मार दिया गया है

    शायद आतताई बदस्तूर अपने काम में लगे हैं

    सुबह का अख़बार जब ख़ून टपकाता हुआ भीतर आता है

    तो तुम्हारे आँसू ही होते हैं जो थाम लेते हैं

    तुम्हारा अकेला क्रोध तुम्हारा अकेला प्रतिरोध

    वे एक कार्रवाई हैं अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध

    शोक की घड़ी में चालाक लोगों की तरह

    अपनी आँखों को काले चश्मों के पीछे मत छिपाओ

    तुम्हारे और दुनिया के बीच जो भी परदे है उन्हें हटा दो

    आँखों को भीगी हुई रहने दो उदास और खुली हुई

    और उनमें किसी और भी बड़े दुःख को प्रवेश करने दो

    आँसुओ की एक महीन पारदर्शिता

    जिससे हर चीज़ व्याकुल और काँपती हुई दिखती है

    और वे आँसू भी बेशक़ीमती हैं

    जिनकी वजह पता नहीं चल पाई है

    जो बिना बात जब-तब इस तरह उमड़ आते हैं

    कि तुम्हें घबराहट होने लगती है

    लेकिन उनमें तुम्हारे भीतर की बहुत-सी चीज़ें भरी हुई हैं

    जो तुम कर पाए और जो नहीं कर सके

    और वह सब जो तुम्हारे अस्तित्व में सिर्फ़ एक सिहरन

    एक कंपन छोड़ कर चला जाता है

    जिसे तुम अक्सर तुम भूले हुए रहते हो

    ऐसे आँसुओं की वजह खोजना व्यर्थ है

    वे तुम्हारे जीवित होने के संकेत हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मंगलेश डबराल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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