आँसू गहराई की आकस्मिकता है : दो
ansu gahrai ki akasmikta hai ha do
न जाने वो तुमसे मिलने का रास्ता था या अलग होने का
पूरे रास्ते में
घने बादल
छाए रहे
कभी रास्ता, कभी दुनिया, कभी ख़ुद को बदलने के ख़याल भी
कड़कड़ाते रहे
दुनिया ने मुझे रुक जाने के लिए एक दरवाज़ा दिया था
जो मुझसे खो गया
कई बार बहुत दिनों तक जब आसमाँ साफ़ रहा
बिन बादलों के मुझे
अपने भीतर एक रेगिस्ताँ दिखाई दिया
न जाने वो तुमसे मिलने का रास्ता था या अलग होने का
रेतीले होने का एहसास मरीचिका-सा चमकता-बुझता रहा
क्या तुम्हें रेत के दरिया में घर जैसा महसूस होता है?
नहीं! ‘घर’ जैसा नहीं
‘सदियों पहले छूटे हुए घर’ जैसा
न जाने वो तुमसे मिलने का रास्ता था या अलग होने का
उस रास्ते में
एक तूफ़ान के उठने की चेतावनी भी दी गई मुझे
तूफ़ान आया?
हाँ, मगर वो तो किसी ख़ामोशी-ओ-ख़ालीपन के आईना-ख़ाने का पासबाँ है
उसे प्रार्थनाएँ, आहें जमा करने और दीवारों की तरह धारणाओं को गिराने का शौक़ है
जैसे शीशे के टुकड़ों और
ओस की बूँदों को
हर जगह में
हर जगह से
सूरज को इकट्ठा करने का शौक़ है
सारे सपने-साए-सरगोशियाँ-वहम और आकृतियाँ एक-दूजे में मिलकर किसी जंगली पगडंडी-सी दिखाई दे रही हैं
जिस पर चलते हुए बहुत कुछ विस्मृति का शिकार हो जाता है
न जाने ये तुमसे मिलने का रास्ता है या अलग होने का
दूर चले जाने या पास आने की भटकती इच्छाओं के अरबी अश्वों के भी कभी पाँव नहीं पड़े जहाँ
छोड़ दिया मुझे कल की उम्मीदों ने अकारण यहाँ
पानी जैसे अचरज के साथ
मैं कहाँ रहूँगा समंदर के सिवा
सूरज, गुलाब, बादल और मुझमें अब फ़र्क़ नहीं कोई
सिर्फ़ एक पुरातन ख़ामोशी-ओ-ख़ालीपन है जिसे गर्मजोशी से जी रही है
आकृतियों, ध्वनियों, ख़ुशबुओं और दिलो-दिमाग़ के ज़र्रों-तरंगों से बनी एक नीरव आँधी एक नीरव नीलिमा
न तुमसे मिलने का रास्ता है कहीं न अलग होने का
मगर फिर भी
दूरी और समय के जादू से बनी इक जुस्तजू
उलझाएगी, सुलझाएगी, मिटाएगी ख़ुद को
विस्मृति और तुम्हारे सपनों के ज़ख़्म लिए हुए
- रचनाकार : संदीप रावत
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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