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अन्नप्राशन

annaprashan

सौम्य मालवीय

सौम्य मालवीय

अन्नप्राशन

सौम्य मालवीय

और अधिकसौम्य मालवीय

    हमने तुम्हें थोड़ा-सा

    सूरज चखने को दिया बेटे

    तुमने उसे जीभ से हल्के से छुआ

    और किरन-किरन मुस्कुरा उठे

    हाथ में चाँद का एक टुकड़ा थमाया

    ताकि तुम उसे कुतरो थोड़ा-थोड़ा

    तुमने होठों से उसकी ठंडक को छुआ

    और किसी जादूगर की तरह उँगलियों से चाँदनी बिखेर दी

    फिर हमने तुम्हें चम्मच में रखकर धरती दी

    तुमने उसे अपने मुलायम मसूढ़ों से दबाया धीमे-धीमे

    वह तुम्हें बहुत पसंद आई होगी

    वरना तुम सबको इशारा कर अपने मुँह में देखने को क्यूँ कहते?

    तुम शायद किन्हीं पुरानी स्मृतियों में लौट गए थे

    पुरानी? क्या तुम्हारे साथ कुछ पुराना भी है?

    तुमने जब पानी पिया

    तो देर तक रखे रहे उसे अपने मुँह में

    जैसे सीपियों के भीतर बोलता है समुद्र का शोर

    कुछ वैसा ही सुना हमने तुम्हारे नन्हें से मुँह के नन्हें से अँधियारे में

    फिर हमने तुम्हें थोड़ी सी अम्मा दी बेटे

    तुमने दोनों हाथों से उनका चेहरे अपने पास किया

    और उनके कानों में कुछ अस्पष्ट सा कहा

    उनकी भीगी आँखों में ख़ुशी के मोती टिमक रहे थे

    कोई रहस्य होगा शायद,

    आख़िर में दिए ज़रा से अप्पा

    जिनकी हथेली पर तुमने अपने नाखूनों से

    जाने क्या उकेरा कि वे तब से

    अपनी हथेली ही देखे जा रहे हैं

    बेटा सूरज, चाँद, धरती, अम्मा, अप्पा

    सबको चखा तुमने थोड़ा-थोड़ा

    जैसे खड़ी हुई दूब चुपचाप नक्षत्रों को चखती है

    तुम्हें शायद अपना पहला स्वाद मिला

    और हम थोड़े-थोड़े

    धरती हुए, सूरज हुए, चाँद हुए

    और अम्मा

    वे तो तबसे नदी की तरह बह रही हैं

    अप्पा, वह तो बस नीले आकाश की तरह छाये हुए हैं

    तुम चखते इन सबको

    तो क्या अम्मा नदी हो पातीं?

    क्या समझ पाते अप्पा अपना आकाश होना?

    स्रोत :
    • रचनाकार : सौम्य मालवीय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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