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अंजुम के लिए

anjum ke liye

रंजना मिश्र

रंजना मिश्र

अंजुम के लिए

रंजना मिश्र

 

एक

कितने दिनों से याद नहीं आया
गली के मोड़ पर खड़ा वह शोहदा 
साइकिल पर टिक कर जो 
मुझे देख गाने गाया करता था
कुढ़ जाती थी मैं उसे देखते ही
हालाँकि आगे जाकर मुस्कुरा दिया करती थी
उसकी नज़र से परे
सुना है रोमियो कहते हैं वे उसे 
मेरे लिए था जो
मेरी नई उम्र का पहला प्रेमी 

दो

तुम लौट जाओ अंजुम
मेरे युवा प्रेमी
अपनी साइकिल के साथ
तुम मुक़ाबला नहीं कर पाओगे उनका
जो बाइक पर आएँगे 
और तुम्हें बताएँगे 
कि अब अच्छे दिन हैं
तुम तो जानते हो
प्रेम बुरे दिनों का साथी होता है अक्सर
जब कोई प्रेम में होता है
बुरे दिन ख़ुद-ब-ख़ुद चले आते हैं
बुरे दिनों में ही लोग करते हैं प्रेम
भिगोते हैं तकिया 
खुलते हैं रेशा-रेशा और लिखते हैं कविताएँ
बुरे दिन,
उन्हें अच्छा इंसान बनाते हैं
मेरी एक बहन बोलने लगी थी 
धाराप्रवाह अँग्रेज़ी
प्रेमी उसका लॉयला में पढ़ता था
एक मित्र तो 
तिब्बती लड़की के प्यार में पड़कर
बनाने लगा था तिब्बती खाना

तीन

जानते हो
भीड़ प्रेम नहीं करती
समझती भी नहीं
प्रेम करता है 
अकेला व्यक्ति
जैसे बुद्ध ने किया था
वे मोबाइल लिए आएँगे 
और कर देंगे वायरल
तुम्हारे एकांत को
तुम्हारे सौम्य को
वे देखेंगे तुम्हें
तुम्हारा प्रेम उनकी नज़रों से चूक जाएगा

चार

जैसे ही उस पार्क के एकांत में
तुम थामोगे अपनी प्रिया का हाथ
सेंसेक्स धड़ से नीचे आएगा
मुद्रास्फीति की दर बढ़ जाएगी
किसान करने लगेंगे आत्महत्या अपने परिवारों के साथ
और चीन डोकलम के रास्ते घुस आएगा तुम्हारे देश में 
देश को सबसे बड़ा ख़तरा तुम्हारे प्रेम से है
तुम्हें देना ही चाहिए
राष्ट्रहित में, एक चुंबन का बलिदान
इसलिए ज़रूरी है
पार्क के एकांत से 
तुम अपने अपने घरों में लौट जाओ
और संस्कृति की तो पूछो ही मत
बिना प्रेम किए भी तुम पैदा कर सकते हो 
दर्जन भर बच्चे
दिल्ली का हाश्मी दवाख़ाना 
तुम्हारी मदद को रहेगा हमेशा तैयार!

स्रोत :
  • रचनाकार : रंजना मिश्र
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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