आँधी के थीम में उड़ा जा रहा है परिंदा
andhi ke theme mein uDa ja raha hai parinda
शंभु यादव
Shambhu Yadav
आँधी के थीम में उड़ा जा रहा है परिंदा
andhi ke theme mein uDa ja raha hai parinda
Shambhu Yadav
शंभु यादव
और अधिकशंभु यादव
बहुत-से सवालों की थैली चोंच में दबाए
आँधी के थीम में उड़ा जा रहा है परिंदा
आँख में जज़्ब किरकिरी...
आजकल बादलों का रुख़ ठीक नहीं
क्या कहना अब इस बात का ऐसा सूखा पड़ा है
बारिश सिर्फ़ आँसुओं में दिखी
मैं निकला हूँ लबालब बादलों की खोज में...
आशाओं के घर और इच्छाओं के घर के बीच
दादी की न थकती टाँगें
मैं पोता उनकी पीठ लदा
बुद्धू-सा, तना अपने रागी बैल-सा
सूखी नदी के तपते बालू में
खिले अभ्रक-सा मेरा दिल
अब आ बसा हूँ दिल्ली शहर
मधु है यहाँ वाक़ई में बहुत-सा
और मधुमक्खियाँ भी अनेकों
प्लास्टिक से सुंदर चेहरों में मोल्ड हुईं
पहचान सकते हैं उन्हें सिर्फ़ उनके दंश से
'परवाह न करना, दंश तो यहाँ भी
वहाँ भी, दंश पड़ें चाहे हज़ारों-हज़ार'
'हाँ! हाँ! सुन रो सूँ ये मेरी दादी माँ’
गाँठ में बाँध रखी है तेरी यह बात।
- रचनाकार : शंभु यादव
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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